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निश्यावलिका ।
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है और सींच कर ( प्रार्थना करता है), पुत्थमाए दिसाए- पूर्व दिशा के, सोमे महाराया - सोम महाराज, पत्थणे पत्थियं - वह सोम नामक दिक्पाल के मार्ग में चलते हुए मेरी, अभिरखखेउरक्षा करें, सोमिल माहण रिसि - सोमिल ब्राह्मण की इस प्रकार बार-बार प्रार्थना कर, जाणि य तत्थ - और वहां पूर्व दिशा में जो भी, कंदाणि य-कंद, मूलाणि य-मूल, तयाणि य-त्वचा ( वृक्षों की छाल), पत्ताणि य-पत्र, पुप्फाणि य-पुष्प, बोयाणि य-बीज, हरियाणि - हरी घास आदि थे, ताणि- उनको, गिण्हइ गिव्हित्ता ग्रहण करने की आज्ञा लेता है और आज्ञा लेकर जो उस दिशा में तृण आदि पदार्थ थे उनसे अपने किढिणसंकाइयं भरइ भरिता- बांस की कांवड़ भरता है और भर कर दंभे य-दूब, कुसे य- कुशा, पत्तामोडं च पत्रामोड़ समिहाकट्ठाणि यगिव्हइ, गिव्हित्ता- समिधा रूप काष्ठ ग्रहण करता है, ग्रहण करके, जेणेव सए उडएजहां उसकी अपनी झोंपड़ी थी, तेणेव उवागज्छइ, उवागच्छित्ता-वहां आता है और आकर किटिसंकाय ठवेइ, ठवित्ता- बांस की कांवड़ को नीचे रखता है और रखकर, वेदि वड्डइ वडिता वेदी बनाता है और बना कर, उबलेण संमज्जण करेइ, करिता - गोबर का लेप करता है संमार्जन करता है और करने के पश्चात्, दब्भकल सहत्थगए - हाथ में दूब और कलश को लेकर, जेणेव गंगा महानई- जहां गंगा महानदी थी, तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता- वहां आता है और आकर, गंगं महान ओगाइ, ओगहित्ता - गंगा महानदी में प्रवेश करता है, करने के पश्चात्, जेलमज्णणं करेह, करिता - जल में स्नान करता है और स्नान करके, जलकिडुं करेइ, करिता - जल-क्रीड़ा करता है और करने के पश्चात् जलाभिसेयं रेइ करिता - जलाभिषेक करता है और करके, आयंते चोक्खे परमसुइभूए - आचमन आदि करके परम शुचिभूत होकर, देवपिउकयकज्जेदेव-पितृ कार्य करता है, दम्भकलस हत्थगए - कुशा और कलश हाथ में ग्रहण कर, गंगाओ महानईओ पच्चत्तरइ, पच्चतः रिता- गंगा महानदी से बाहर निकला और निकल कर, जेणेत्र सए उडए - जहां उसकी झोंपड़ी थी, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता - वहां आता है और आकर, दहिय दूब, कुसेहि य-कुशा, बालुयाए य - ( - (और) बालुका से, (वेदि रएइ, रइत्ता - वेदी की रचना करता है और रचना करने के पश्चात्, सरयं करेइ करिता - सरक (अग्नि उत्पन्न करने का काष्ठ) को घिसता है घिसने के पश्चात्, अग्नि करे - अग्नि उत्पन्न करने का प्रयत्न करता है, करिता - प्रयत्न करके, सरएणं अणि महेइ - सरक से अग्नि मन्थन करता है, अरिंग पाडेइ, अग्निकुण्ड में डालता है, पातयित्ता - डाल कर अग्गि संधक्खेइ - अग्नि जलाता है और जला कर, समिहाकट्ठाई पक्खिवइ, पविखवित्ता- उस अग्नि में समिधा रूप लकड़ियां डालता है और डाल कर, अग्ग उज्जालेइ, उज्जालित्ता-अग्नि को जाज्वल्यमान करता है और जाज्वल्यमान करके, अग्गस दहिणे पासं— अग्नि की दाहिनी ओर, सत्तंगाई समावहे - सात अङ्ग – वस्तुओं को स्थापित करता है।
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(वर्ग-तृतीय
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तं
'जहा- - जैसे कि, कत्थं वक्कलं - सक्थ और बल्कल, ठाणं- स्थान, सिज्जं भंड कमंडलुं - शैय्या, बर्तन लौर कमंडलु, दंड दारु - दण्ड दारु, तहप्पाणं- स्वयं को, अह ताई समाद