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बर्ग-द्वितीय]
( १७८ )
[निरयावलिका
इनकी माताओं के नाम पर ही इनके नाम जानने चाहिये। अन्तर इनके नामों, दीक्षा - पर्यायों व देवलोक के नामों में है । इस अध्ययन से सिद्ध होता है कि सम्यग् ज्ञान, सम्यग् दर्शन, सम्यग् चारित्र व सम्यग् तप की आराधना से श्रेष्ठ गति प्राप्त होती है । देव-लोक में देव रूप में जन्म, शुभकर्मोदय से ही होता है : महाविदेह क्षेत्र से इन सभी चारित्रशील प्रात्माओं ने मोक्ष पधारना है। सभी अध्ययनों में घटनाक्रम एक तरह का है।
इस प्रकार कल्पावतंसिका नामक द्वितीय वर्ग में निम्नलिखित मुनियों का वर्णन है, काल, सुकाल के पुत्र पद्म-महापद्म अनगार ने पांच वर्ष संयम पालन किया, तदनन्तर सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्कृष्ट दो सागरोपम प्राय वाला, महापद्म ईशान देवलोक में दो सागरोपम से कुछ अधिक आयु वाला देव बना । महाकाल, कृष्ण और सुकृष्ण के पुत्र भद्र, सुभद्र और पद्म भद्र ने चार वर्ष संयम पर्याय का पालन किया । भद्र मुनि सनत्कुमार नामक तीसरे देवलोक में उत्कृष्ट सात सागरोपम की आयु वाला, सुभद्रमुनि माहेन्द्र नामक चतुर्थ देवलोक में उत्कृष्ट सात सागरोपम और पद्म भद्रमुनि ब्रह्मलोक नामक पांचवें देवलोक में उत्कृष्ट दस सागरोपम को आयु बाला देव बना। महाकृष्ण, रामकृष्ण का पुत्र पद्मसेन पद्मगुल्म मुनि हुए । पद्मसेन मनि लांतक नामक छटे देवलोक में उत्कृष्ट चौदह सागरोपम की स्थिति बाला देव बना । पद्मगुल्म मुनि महाशुक्र नाम के सातवें देवलोक में सत्रह सागरोपम की आयु वाले देव बने । इन्होंने तोन वर्ष संयम का पालन किया। नलिनी-गुल्म सहस्रार देवलोक में १६ सागरोपम आयु वाले देव बने। पितृ सेन कृष्ण व महासेन कृष्ण के पुत्र मानन्द मुनि व नन्दन मुनि ने दो-दो वर्ष संयम पालन किया। आनन्द मुनि प्राणत नाम के नवमे देवलोक में उत्कृष्ट २० सागरोपम बायु वाला व नन्वन मुनि वारहवें अच्युत देवलोक में २२ सागरोपम स्थिति वाले देव बने॥६॥
॥ द्वितीय वर्ग समाप्त ॥