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________________ प्रजा का इसमें वर्णन है। (ज्यादा वर्णन प्रस्तावना में देखना चाहिए)। जैन शास्त्रकार प्राचीन काल से ही ने टीका टब्बा, भाष्य, नियुक्ति ग्रन्थों की रचना करते आ रहे हैं । नियुक्ति के रूप में आचार्य श्री भद्र बाहु स्वामी जी का नाम विशेष प्रसिद्ध है। भाष्य के रूप में ग्रन्थ की संस्कृत व प्राकृत में मिली-जुली भाषा में व्याख्या होती है। टीकाकार के रूप में प्रमुख नाम हैं-श्री अभयदेव सूरि, श्री शीलांकाचार्य, श्री मलय-गिरि और श्री हेमचन्द्राचार्य। टब्बाकार के रूप में पूज्य आचार्य श्री पार्श्व चन्द्र जी सूरि का नाम प्रसिद्ध है। इसी प्रकार जैन आगमों के अनुवाद विभिन्न देशी-विदेशी भाषाओं में होते रहे हैं, जिनमें हिन्दी, पजाबी, बंगाली, गुजराती, राजस्थानी, मराठी, तमिल, कन्नड़ भाषायें प्रमुख हैं । इन भाषाओं में कविता-अनुवाद भी हुए हैं जो प्रमुख कवियों ने किये हैं। विदेशी भाषाओं में अंग्रेजी, जर्मन, फंच, स्पेनिश आदि भाषायें प्रमुख हैं जिनमें जैन आगमों के अनुवाद उपलब्ध हैं । भारतीय अनुवादकों में प्रमुख नाम आचार्य श्री अमोलक ऋषि जी म०, आचार्य श्री आत्माराम जी म०, आचार्य श्री घासी लाल जी म०, आचार्य श्री हस्तीमल जी म०, आचार्य श्री तुलसी जी महाराज, युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ जी म०, पण्डित सुखलाल जी संघवी, पूज्य श्री पुष्फ भिक्खू जो म०, उपाध्याय श्री अमर मुनि जी म०, स्व० उपाध्याय श्रमण श्री फूलचन्द्र जी महाराज, साध्वी श्री चन्दना जी महाराज, श्रमण संघीय सलाहकार श्री ज्ञान मुनि जी म., पण्डित श्री हेमचन्द्र जी महाराज श्री अमर मुनि जी म०, साध्वी डा० श्री मुक्ति प्रभा जो म०, साध्वी डा० श्री दिव्य प्रभा जी म०, श्री कन्हैया लाल जी म० 'कमल' के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। .. अंग्रेजी भाषा में डा० हर्मन जैकोवी का नाम विश्व-प्रसिद्ध है। डा. गणेश ललवाणी आदि ने अंग्रेजी भाषा में भगवती सूत्र के अनुवाद में सहयोग दिया है। आगम प्रकाशन समिति व्यावर ने विभिन्न मुनियों, विद्वानों के सहयोग से ३२ आगमों का सुन्दर प्रकाशन कराया है। सभी एक दूसरे से बढ़ कर हैं। मैं क्षमा चाहती हूं कि बहुत सी भाषाओं के अनुवादकों के नाम इस समय मेरी स्मृति में नहीं हैं। पर हर ज्ञात व अज्ञात लेखक हमारे लिये साधुवाद के पात्र हैं। उनका यह कार्य अभिनन्दनीय है। प्रस्तुत अनुवाद व उसका इतिहास प्रत्येक रचना के पीछे कोई न कोई कारण तो होता ही है। ऐसे ही इस रचना के पीछे मेरी एक पुरानी मन की अभिलाषा थी, वह यह कि एक आगम का स्वयं संपादन करके प्रकाश में लाऊं, मेरा जन्म लाहौर में हुआ था। उस समय लाहौर में आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज का प्रसिद्ध प्रचार-क्षेत्र था। मुझे बचपन में ही प्राचार्य श्री के सान्निध्य में बैठने सुनने का अवसर मिलता रहता था। आचार्य श्री के तीन आगम-१. उत्तराध्ययन सूत्र (३-भाग), दशवैकालिक (३), अनुत्तरोपपातिक और (४) दशाश्रुत-स्कन्ध । लाहौर में ही छपे थे। [ तेरह ]
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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