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________________ [ वर्ग निरयावलिका ] ( ११७ ) आता है, उवागच्छित्ता - श्राकर, चाउरघण्टं आसरहं दुरुहइ - उस चार घंटों वाले अश्व - रथ पर आरूढ़ होकर, वेसालि नयर- वैशाली नगरी के, मज्झमज्झेणं-बीचों-बीच होता हुआ, निगच्छइ जाता है, निगच्छित्ता - जाकर, सुभह व सहीहि मार्ग में अच्छे ठिकानों में विश्राम करता हुआ, पायरासे हि - प्रातःकालीन जलपान करके, जाव वद्धावित्ता एवं वयासी - यावत् बधाई देकर, इस प्रकार बोला, एवं खलु सामी - हे स्वामी निश्चय ही, चेडय राया आणवेइ - चेटक राजा इस प्रकार कहता है, जह चेत्र गं कूणिए राया-जैसे कोणिक राजा, सेनियस्स रन्नो पुत्तेश्रेणिक राजा का पुत्र, चेलणाए देवाए बत्तए - चेलना देवी का आत्मज है, मम नुत्तए - मेरा दोहा है, तं चैव भाणियम्बं - इस प्रकार से कहना, जाव - यावत् ( अर्थात् वेहल्ल कुमार भी राजा श्रेणिक का पुत्र चेलना देवो का आत्मज और मेरा दोहता है), वेहल्लं च कुमारं पेसेमि - वेहल्ल कुमार को वापिस भेज दूंगा, तं न देइ णं सामी - वस्तुतः हे स्वामी वह नहीं देता, चेडय रायाचेटक राजा, सेवणगं गन्धहत्थि अट्ठारसबंक हारं च - सेचनक गन्धहस्ती व अठारह लड़ियों वाला हार, वेल्लं च नो पेसेइ - अ. र वेहल्ल कुमार को भी नहीं भेजना चाहता || ६८ ।। - प्रथम मूलार्थ - वह दूत राजा चेक द्वारा बापिस भेज देने पर जहां दूत का चार घण्टों वाला अश्व-रथ' खड़ा था वहां आता है, आकर चतुर्घण्टक अश्वरथ पर आरूढ़ होता है आरूढ़ होकर वैशाली नगरी के बीचों-बीच से होता हुआ बाहर आकर सुखमय स्थानों में विश्राम करता है । प्रात: काल का अशन करता है ( अर्थात् सुबह का अल्पहार करता है) और फिर राजा कोणिक के पास आता है, यावत् वधाई देकर इस प्रकार कहता हैहे स्वामी ! निश्चय ही चेटक राजा इस प्रकार कहता है कि कोणिक पुत्र, चेल्लना देवी का आत्मज व मेरा दोहता है, इसी प्रकार वेहल्ल कुमार भी है यावत् पूर्व कथनानुसार वेहल्ल कुमार को समय आने पर भेज दूंगा । हे स्वामी ! वस्तुतः चेटक राजा सेचनक गंधहस्ती व अठारह लड़ियों बाला हार और वेहल्ल कुमार को देने के लिये तैयार नहीं ॥ ६८ ॥ राजा श्रेणिक का टीका - प्रस्तुत सूत्र में दूत के वैशाली आगमन का वर्णन है दूत चार घण्टों वाले अश्वरथ पर आरूढ़ होकर गया था, इस सुन्दर रथ के चारों ओर घण्टे लगे हुए थे । दूत रास्ते में सुखमय स्थानों पर ठहरा, अर्थात् वैशाली से लेकर चम्पा नगरी तक उसे कोई असुविधा नहीं हुई । दूत सीधा अपने स्वामी राजा कोणिक के पास पहुंचा । वैशाली नरेश का सेचनक गन्धहस्ती, अठारह लड़ियों वाला हार व वेहल्ल कुमार सम्बन्धी सारा सन्देश सुनाता है। निम्नलिखित सन्देश ही राजा कोणिक के क्रोध का कारण बना है जब दूत राजा चेटक को यह बात बतलाता है।
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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