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* प्रकाशकीय #
भारतीय धर्म दर्शन में जैन आगम साहित्य का महत्वपूर्ण स्थान है। जैन श्रागमों में आचारांग आदि द्वादश श्रंग और १२ उपांग हैं । उपांगों में निरयावलिका सूत्र का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है । निरावलिका के अतिरिक्त कल्पातंसिका पुष्पिता, पुष्पचूलिका में निरयावलिका सूत्र सूत्र और वृष्णिदशा नाम के अन्य उपांगों का भी समावेश है ।
उपगों का भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि इन उपांगों में भगवान महावीर, भगवान पार्श्वनाथ व भगवान अरिष्टनेमि के समय की घटनाओं का यथार्थं वर्णन उपलब्ध है । जैसे निरावलिका सूत्र में कोणिक जन्म, राजा श्रेणिक का पदच्युत होना, चेटक - कोणिक संग्राम का विस्तृत वर्णन है । कोणिक के १० भ्राताओं की युद्ध में मृत्यु होना, श्रेणिक की रानियों द्वारा भगवान महावीर के कर कमलों द्वारा साध्वी-जीवन ग्रहण करने का वर्णन है । बैशाली गणतन्त्र के विनाश का यह एक ऐतिहासिक प्रमाण है। दूसरे उपांग के १० अध्ययनों में राजा श्रेणिक के पौत्रों द्वारा भिक्षु जीवन ग्रहण करने का वर्णन है । तीसरे उपांग में भी १० अध्ययन हैं, जिसमें क्रमशः चन्द्र, सूर्य, शुक्र के भगवान महावीर के समोसरण में आने का वर्णन है साथ में इनके पूर्व भव का भी वर्णन उपलब्ध होता है। बहुपत्रिका नामक अध्ययन में साध्वियों को सांसारिक कार्यों से दूर रहने का निर्देश दिया गया है। इसी प्रकार पूर्ण, मणिभद्र दत्त, शिव, बल और अनिरुद्ध प्रादि के जीवन का संक्षिप्त वर्णन भी इसमें मिलता है । चतुर्थ उपांग पुष्पचूला के भी १० अध्ययन हैं । इनके नाम क्रमशः श्री देवी, ह्री, धी, कृति, बुद्धि, लक्ष्मी, इलादेवो, सुरादेवी, रसदेवी, गंधर्व देवी हैं । मुख्य रूप से श्रीदेवी का वर्णन करके अन्य देवियों के माता-पिता एवं जन्म स्थान आदि का संकेत • मात्र कर दिया गया है ।
इस अध्ययन में भूता साध्वी द्वारा साधना छोड़कर है जो साध्वाचार के विपरीत है। पांचवें वर्ग वृष्णि दशा के
श्रृंगार की तरफ ध्यान देने का वर्णन १२ अध्ययनों के नाम क्रमश: इस प्रकार
(४) बहे कुमार, (५) प्रगति कुमार,
- (१) निषेध कुमार, (२) मातली कुमार, (३) वह कुमार, (६) ज्योति कुमार, (७) दशरथ कुमार, (८) दृढरथ कुमार, (६) महाधनु कुमार, (१०) सप्त धनु कुमार, (११) दश धनु कुमार और (१२) शतधनु कुमार । इन सभी अध्ययनों का समय की दृष्टि से २२ वें तीर्थङ्कर श्री अरिष्टनेमि जी से सम्बन्ध है । इस उपांग में प्रमुख वर्णन निषध कुमार के पूर्व भव का है । इस प्रकार समस्त निरयावलिका सूत्र के पांचों उपांगों में ५२ अध्ययन हैं ।
पच्चीसवीं महावीर निर्वाण शताब्दी संयोजिका समिति पंजाब तीन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हमेशा प्रयत्नशील रही है । (१) पंजाबी जैन साहित्य का निर्माण, (२) जैन (३) जैन चेयर की स्थापना। जहां तक पंजाबी जैन साहित्य का सम्बन्ध है,
विद्वानों का
हमारी
[सात]