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________________ इस सूत्र के अध्ययन अति प्राचीन और शिक्षाप्रद हैं, प्रत्येक धर्म-प्रिय व्यक्ति को इनका विधि-पूर्वक अध्ययन करना चाहिये, क्योंकि इस सूत्र का विषय विरक्ति-प्रधान आध्यात्मिक ज्ञान करते हुए भी गृहस्थोपयोगी ज्ञान भी प्रदान करता है। मैंने इस सूत्र के हिन्दी अनुवाद में निम्न लिखित कृतियों की सहायता ली है-हस्तलिखित तीन प्रतियां जो टब्बे के रूप में मेरे पास ही थीं, इनके अतिरिक्त जैन-धर्म-प्रसारक सभा, भाव नगर की ओर से इंग्लिश में मुद्रित एक प्रति भी मेरे लेखन का आधार रही है। अहमदाबाद से श्री आगमोदय समिति द्वारा मुद्रित श्री चन्द्र सूरि विरचित वृत्तियुक्त निरयावलिका सूत्र की प्रति भी मूल-सूत्र लिखने में सहायक रही है। उपर्युक्त विवरण तो केवल नाम मात्र ही है। संस्कृत-छाया अन्य सत्रों की टीकाओं तथा व्याकरण के आधार पर की गई है, यदि इसमें कोई अशुद्धि रह गई हो तो विद्वद्-वर्ग इसको सुधार कर पढ़े। इस सूत्र के मूल पाठ का आधार श्री प्रागमोदय समिति की प्रति ही रही है । श्री अमोलक ऋषि जी महाराज द्वारा लिखित प्रति से सूत्रों के अंक लगाते हुए भी कहीं-कहीं पर आवश्यकता के अनुसार सूत्रांकों में परिवतेन भी किया गया है। मकसूदाबाद से प्रकाशित प्रति भी मूल पाठ मिलाने के लिये प्रयोग में लाई गई है। इन समस्त प्रतियों के लेखकों के प्रति मैं अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए आशा करता हूं कि पाठक वर्ग इस सूत्र के स्वाध्याय से अपनी आत्मा को अलंकृत कर निर्वाण के अधिकारी बनेंगे। भवदीय प्रातमाराम - सम्वत् २००३, ज्येष्ठ कृष्णा अष्टमी, लुधियाना,
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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