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प्रथम अध्ययन, उद्देशक ५
पर। अंतरा-मार्ग के मध्य में। से-उस भिक्षु को जाते हुए निम्न लिखित कारण हों यथा। वप्पाणि वा-ऊँचीनीची भूमि हो अथवा बीज बोने के लिए खेत में क्यारिएं बना दी हों। फलिहाणि वा-अथवा खाई खोद रखी हो। पागाराणि वा- अथवा प्रकोट बना रखा हो। तोरणाणि वा-तोरण-द्वार का अवयव विशेष तथा। अग्गलाणि वा-अर्गला-किवाड़ बन्द करने के लिए काष्ठ विशेष की बनी हुई एक वस्तु। अग्गलपासगाणि वा-जिसमें अर्गल दिया जाता हो वह स्थान। सति परक्कमे-अन्य मार्ग के होने पर। संजयामेव-संयती-संयमशील साधु। परिक्कमिजा-उस मार्ग से जाए, किन्तु। उज्जुयं-सीधा उक्त क्यारी आदि के मार्ग से। नो गच्छिज्जा-न जाए। कोई शिष्य प्रश्न करता है कि भगवन् ! ऋजु मार्ग से जाने का क्यों निषेध किया है? इसके उत्तर में गुरु कहते हैं-। केवली-केवलि भगवान।बूया-कहते हैं कि।आयाणमेयं-यह मार्ग कर्म आने का है। क्योंकि इससे संयम और आत्मा की विराधना होने की सम्भावना है, सूत्रकार वही दिखाते हैं। से-वह भिक्षु। तत्थ-खेत आदि के मार्ग से। परक्कममाणे-जाता हुआ। पयलिज वा- कम्पित हो जाए या प्रस्खलित हो जावे। पक्खलेज वा-फिसल जाए। पवडिज वा-अथवा गिर पड़े। से-वह भिक्षु। तत्थ-उस मार्ग में। पयलमाणे वा-काम्पता हुआ। पक्खलेजमाणे वा-अथवा प्रस्खलित होता हुआ अर्थात् फिसलता हुआ। पवडमाणे वा-अथवा गिरता हुआ ६ कायों में से किसी एक की हिंसा करता है अर्थात् उसके फिसलने या गिरने आदि से षट्काय में से किसी की विराधना होने पर संयम की विराधना होती है। तत्थ-उस मार्ग में। से-उस भिक्षु का। काए-शरीर (फिसलने या गिरने आदि से )। उच्चारेण वा-उच्चार-विष्टा से, अथवा। पासवणेण वा-मूत्र से। खेलेण वा-मुख के मल श्लेष्मा से। सिंघाणेण वा-अथवा नाक के मल से।वंतेण वा-वमन से। पित्तेण वा-अथवा पित्त से शरीरगत धातु विशेष से।पूयेण वा-अथवा पूय से-पीप से अर्थात् राध से।सुक्केण वा-अथवा शुक्र-वीर्य से।सोणिएण वा-अथवा शोणित रुधिर से। उवलित्ते सिया-उपलिप्त हो जावे। तहप्पगारं कायं-तथा प्रकार से उपलिप्त हुए शरीर को। नो-नहीं। अणंतरहियाए-अन्तर रहित। पुढवीए-पृथ्वी से अर्थात् सचित्त पृथ्वी से। नो-नहीं। ससिणिद्धाएपुढवीए-स्निग्ध-आर्द्र पृथ्वी से। नो-नहीं। ससरक्खाए पुढवीए-सरजस्क पृथ्वी से। नो चित्तमंत्ताए सिलाए-नहीं सचित्त चेतनायुक्त शिला से। नो चित्तमंत्ताए लेलूए वा- नहीं सचित्त चेतनायुक्त शिलाखंड से अथवा। कोलावासंसि-घुश से युक्त। दारुए-काष्ठ से। जीवपइट्ठिए-अथवा जीवप्रतिष्ठित जिसमें बाहर से जीव आये हों-काष्ठ से। सअंडे-अंडों से युक्त काष्ठ अथवा। सपाणे-प्राणी युक्त काष्ठ आदि से। जाव-यावत्। ससंताणए-जाला आदि युक्त काष्ठ आदि से। नो आमजिज वा-एक बार भी मसले नहीं अथवा । पमजिज्ज वा-पुनः पुनः मसले नहीं। संलिहिज्ज वा-अथवा घर्षित न करे। निलिहिज्ज वा- अथवा पूंछे नहीं। उव्वलेज वा-अथवा उद्धर्त्तन अर्थात् विशेष रूप से पूंछे नहीं। उव्वट्टिज वा-अथवा उद्वर्त्तन न करे। आयाविज वा-अथवा एक बार भी धूप में सुखाए नहीं। पयाविज वा-अथवा पुनः-पुनः धूप में सुखाए नहीं। से-वह भिक्षु। पुव्वामेव-पहले ही। अप्पससरक्खं-रज रहित। तणं वा-तृण अथवा। पत्तं वा-पत्र। कटुं वा-अथवा काष्ठ। सक्करं वा-एवं कंकड़ की। जाइजा-याचना करे। जाइत्ता-याचना करके।से-वह भिक्षु। तमाय -उसको लेकर। एगंतमवक्कमिज्जा-एकान्त स्थान पर चला जाए, एकान्त स्थान पर जाकर देखे कि। अहे झामथंडिलंसि वा-जो भूमि अग्नि के संयोग से अचित्त होकर स्थंडिल रूप में अवस्थित है-ऐसे स्थंडिल