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________________ ५१ प्रथम अध्ययन, उद्देशक ४ अन्य जीवों की विरीधना होने की सम्भावना है और तीसरे में वाचना, पृच्छना आदि स्वाध्याय के पांचों अंगों में अन्तराय पड़ने की सम्भावना है। क्योंकि वहां गीत आदि होने से स्वाध्याय नहीं हो सकेगा। इस तरह संखडि में जाने के कारण अनेक दोषों का सेवन होता है, ऐसा जानकर उसका निषेध किया गया है। इसके अतिरिक्त आगम में संखडि में जाने का निषेध किया है । प्रस्तुत अध्ययन के द्वितीय उद्देशक में भी संखडि में जाने का निषेध किया गया है। परन्तु, प्रस्तुत सूत्र में निषेध के साथ अपवाद मार्ग में विधान भी किया गया है। यदि संखडि में जाने का मार्ग जीव-जन्तुओं एवं हरितकाय या बीजों से आवृत्त नहीं है, अन्य मत के भिक्षु भी वहां नहीं हैं और आहार भी निर्दोष एव एषणीय है तो साधु उसे ग्रहण कर सकता है। परन्तु, वृत्तिकार का कथन है कि प्रस्तुत सूत्र अवस्था विशेष के लिए है। उसमें बताया गया है कि यदि साधु थका हुआ है अर्थात् लम्बा विहार करके आया है, बीमारी से तुरन्त ही उठा है या तपश्चर्या से जिसका शरीर कृश हो गया है, वह भिक्षु इस बात को जान ले कि संखडि में जाने से किसी दोष के लगने की सम्भावना नहीं है, तो वह वहां से भिक्षा ले सकता है। ___इससे स्पष्ट होता है कि उत्सर्ग मार्ग में सामिष एवं निरामिष किसी भी तरह की संखडि में जाने का विधान नहीं है। अपवाद मार्ग में भी उस संखडि में जाने एवं आहार ग्रहण करने का आदेश दिया गया है, जिसमें जाने का मार्ग निर्दोष हो और निर्दोष एवं एषणीय निरामिष आहार मिल सकता हो, अन्य संखडि में जहां का मार्ग जीव-जन्तु आदि से युक्त हो, जहां सामिष भोजन बना हो तथा निरामिष भोजन भी सदोष हो या अन्य मत के भिक्षु भिक्षार्थ आए हों तो वहां अपवाद मार्ग में भी जाने का आदेश नहीं है। प्रश्न पूछा जा सकता है कि जब साधु अपवाद मार्ग में संखडि में जा सकता है; तो सामिष संखडि में बना हुआ मांस क्यों नहीं ग्रहण कर सकता? इसका समाधान यह है कि यहां अपवाद कारण विशेष से है अथवा साधु की शारीरिक स्थिति के कारण है, परन्तु वहां बने हुए सभी तरह के आहार को लेने के लिए नहीं हैं। यदि संखडि में जाने का मार्ग ठीक नहीं है और आहार भी सामिष है या निरामिष आहार भी सदोष है तो शारीरिक दुर्बलता के समय भी साधु को वहां जाने का आदेश नहीं है। प्रस्तुत सूत्र में यह भी बताया गया है कि संखडि में जाने से स्वाध्याय के पांचों अंगों में व्यवधान पड़ता है। स्वाध्याय चलते हुए करने का निषेध है, वह तो एक स्थान पर बैठकर ही किया जा सकता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि संखडि में जाने पर कुछ देर के लिए वहां बैठना भी पड़ता था। अतः अपवाद मार्ग में जाने वाला साधु वहां कुछ काल के लिए ठहर भी सकता है और बीमार एवं तपस्वी आदि के लिए समय पर गृहस्थ के घर में बैठने का विधान भी है। अस्तु, संखडि में जाने का यह अपवाद विशेष कारण होने पर ही रखा गया है। १ उत्तराध्ययन, १, ३२, बृहत्कल्प सूत्र उ०१ निशीथ सूत्र, उ०३। २ साम्प्रतमपवादमाह-स भिक्षुरध्वानक्षीणो ग्लानोत्थितस्तपश्चरणकर्षितोवाऽमवौदर्यवा प्रेक्ष्य दुर्लभद्रव्यार्थी वा स यदि पुनरेबं जानीयात्। - आचारांग वृत्ति
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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