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प्रथम अध्ययन, उद्देशक ४
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पश्चात् संखडि वा संखडिं संखडिप्रतिज्ञया नाभिसन्धारयेद् गमनाय । स भिक्षुर्वा तत् यद् पुनः जानीयात् मांसादिकं वा मत्स्यादिकं वा यावत् ह्रियमाणं वा प्रेक्ष्य अन्तराः तस्य मार्गाः अल्पप्राणाःयावत् सन्तानकाः न यत्र बहवः श्रमण यावत् उपागमिष्यन्ति अल्पाकीर्णा वृत्तिः प्राज्ञस्य निष्क्रमणप्रवेशाय प्राज्ञस्य वाचनाप्रच्छनापरिवर्तनाऽनुप्रेक्षाधर्मानुयोगचिन्तायै, स एवं ज्ञात्वा तथा प्रकारां पुरः संखडिं वा० अभिसन्धारयेद् गमनाय ।
पदार्थ- से वह । भिक्खू वा साधु वा साध्वी । जाव- यावत् । समाणे- गृहस्थ के घर में प्रवेश करते हुए। - फिर आहारादि को । जाणेज्जा - जाने । मंसाइयं वा - जिसमें मांस प्रधान है। मच्छाइयं वा-जिसमें मत्स्य प्रधान है। मंसखलं वा- जिसमें शुष्क मांस का समूह है। मच्छखलं वा- जिसमें मत्स्यों का समूह अथवा आहेणं वा - जो भोजन वधू प्रवेश के अनन्तर बनाया जाता है, अथवा | पहेणं वा-वधू के जाने पर उनके पिता के घर में जो भोजन तैयार होता है, या। हिंगोलं वा मृतक के निमित्त जो भोजन बनता है, अथवा यक्षादि की यात्रा के निमित्त बनाया गया है। संमेलं वा-या जो भोजन परिजन के सम्मानार्थ बनता है, तथा मित्रों के निमित्त बनाया गया है। हीरमाणं - उक्त स्थानों से भोजन ले जाते हुए को। पेहाए-देखकर भिक्षु को उक्त स्थानों भिक्षा के लिए नहीं जाना चाहिए। क्योंकि वहां जाने पर निम्नलिखित दोषों के उत्पन्न होने की संभावना है। सेउस भिक्षु को। अंतरामग्गा - मार्ग के मध्य में । बहुपाणा-बहुत प्राणी । बहुबीया - बहुत बीज । बहुहरिया - बहुत हरी।बहुओसा-बहुत ओस । बहुउदया - बहुत पानी । बहुउत्तिंगपणगदगमट्टीमक्कडासंताणया - बहुत सूक्ष्म जीव निगोद वा पांच वर्ण फूल, जल से आर्द्र मृत्तिका और मकड़ी का जाला आदि की विराधना की संभावना है और । तत्थ - उस भोजन के स्थान पर । बहवे - बहुत से । समणमाहणअतिहिकिवणवणीमगा - श्रमण- शाक्यादि भिक्षुगण, ब्राह्मण, अतिथि, कृपण और याचक । उवागया- आए हुए हैं अथवा । उवागच्छंति आ रहे हैं अथवा -- । उवागमिस्संति-आएंगे। तत्थाइन्ना-वहां पर आकीर्ण । वित्ती-वृत्ति है अर्थात् वहां संकीर्ण वृत्ति हो रही है अतः। पन्नस्स-प्रज्ञावान-बुद्धिमान् साधु को । नो निक्खमणपवेसाए वहां पर निष्क्रमण और प्रवेश नहीं करना चाहिए, तथा। पन्नस्स-बुद्धिमान साधु को वहां उस संखडि में । नो वायणपुच्छण-परियट्टणाणुप्पेहधम्माणुओगचिंताएं-वाचना, पृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्मानुयोगचिन्ता नहीं हो सकती, कारण कि वहां गायन, वादन आदि की अधिकता रहती है, अत: । से - वह । एवं - इस प्रकार । नच्चा - जानकर । तहप्पगारं - उ प्रकार की । पुरेसंखडिं वा - पूर्व संखडि में या । पच्छा संखडिं वा पश्चात् संखडि में । संखडिं - संखडि को। संखडिपडियाए-संखडि की प्रतिज्ञा से । गमणाए -गमन करने के लिए। नो अभिसंधारिज्जा-मन में संकल्प न करे। अब इस सूत्र के आपवादिक विषय में कहते हैं यथा । से भिक्खू वा - वह साधु अथवा साध्वी । से जं पुण जाणिज्जा - यदि फिर ऐसे जाने कि । मंसाइयं वा - जिस भोजन मे मांस प्रधान है तथा । मच्छाइयं वा मत्स्य प्रधान है। जाव - यावत् । हीरमाणं वा ले जाते हुए को । पेहाए-देखकर। से उस भिक्षु को । अन्तरामग्गा-मार्ग के मध्य में। अप्पपाणा- प्राणी नहीं हैं । जाव यावत् । संताणगा - मकड़ी का जाला भी नहीं है । जत्थ - जहां पर । बहवे बहुत से। समणा०- श्रमण- शाक्यादि भिक्षु गण। जाव - यावत् । नो उवागमिस्संति नहीं आयेंगे और । अप्पाइन्ना-अल्पाकीर्ण। वित्ती-वृत्ति है अतः । पन्नस्स- प्रज्ञावान बुद्धिमान् साधु को । निक्खमणपवेसाए
-उक्त
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