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________________ प्रथम अध्ययन, उद्देशक ३ न निमन्त्रण करते हुए। असणं वा ४- अशनादिक चतुर्विध आहार । लाभे संते- प्राप्त होने पर। नो पडिग्गाहिज्जाग्रहण न करे। त्तिबेमि- इस प्रकार मैं कहता हूँ । ४७ मूलार्थ - साधु वा साध्वी इन कुलों को जाने, यथा चक्रवर्ती आदि क्षत्रियों के कुल, उन से भिन्न अन्य राजाओं के कुल, एक देशवासी राजाओं के कुल, दण्डपाशिक प्रभृति के कुल, राजा के सम्बन्धियों के कुल और इन कुलों से घर के बाहर या भीतर जाते हुए, खड़े या बैठे हुए, निमंत्रण किए जाने अथवा न किए जाने पर वहां से प्राप्त होने वाले चतुर्विध आहार को साधु ग्रहण न करे। ऐसा मैं कहता हूँ । हिन्दी विवेचन प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि मुनि को चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव आदि क्षत्रिय कुलों का तथा उनसे भिन्न राजाओं के कुल का, एक देश के राजाओं के कुल का, राजप्रेष्य- दण्ड- पाशिक आदि के कुल का और राजवंशस्थं कुलों का आहार नहीं लेना चाहिए । उक्त कुलों का आहार उनके द्वारा निमन्त्रण करने पर या बिना निमन्त्रणं किए तथा उनके घर से बाहर या घर में किसी भी तरह एवं कहीं भी ग्रहण नहीं करना चाहिए।. इस निषेध का कारण है कि राजभवन एवं राजमहल आदि में लोगों का आवागमन अधिक होने से साधु भली-भांति ईर्यासमिति का पालन नहीं कर सकता। इस कारण संयम की विराधना होती है । इसलिए साधु को उक्त कुलों में आहार आदि के लिए प्रवेश नहीं करना चाहिए। यह कथन भी सापेक्ष ही 'समझना चाहिए। क्योंकि प्रस्तुत अध्ययन के द्वितीय उद्देशक में जिन १२ कुलों का निर्देश किया है उनमें उग्र कुल, भोग कुल, राजन्य कुल, इक्ष्वाकु, हरिवंश आदि कुलों से आहार लेने का स्पष्ट वर्णन है। भगवान महावीर के प्रमुख शिष्य गणधर गौतम अतिमुक्तं कुमार के अंगुली पकड़ने पर उसके साथ उसके घर पर भिक्षार्थ गए थे। इससे स्पष्ट होता है कि यदि इन कुलों में जाने पर संयम में किसी तरह का दोष न लगता हो तो इन घरों से निर्दोष आहार लेने में कोई दोष नहीं है। यहां पर निषेध केवल इसलिए किया गया है कि यदि राजघरों में अधिक चहल-पहल आदि हो तो उस समय ईर्यासमिति का भलीभाँति पालन नहीं किया जा सकेगा, इस संबन्ध में वृत्तिकार का भी यही अभिमत है । 'त्तिबेमि' की व्याख्या पूर्ववत् समझें । ॥ तृतीय उद्देशक समाप्त ॥
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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