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प्रथम अध्ययन, उद्देशक २ अजुगुप्सितेषु अगर्हितेषु अशनं वा ४ प्रासुकं यावद् गृण्हीयात्।
• पदार्थ-से-वह। भिक्खू वा- भिक्षु साधु अथवा साध्वी। जाव- यावत्। समाणे-घर में प्रवेश करते हुए।से-वह। पुण-फिर।जाइं-इन।कुलाइं-कुलों को।जाणिज्जा-जाने।तंजहा-जैसे कि- । उग्गकुलाणि वा-उग्र कुल। भोगकुलाणि वा-भोग कुल।राइन्नकुलाणि वा-राजन्य कुल।खत्तियकुलाणि वा-क्षत्रिय कुल।इक्खागकुलाणि वा-इक्ष्वाकु कुल।हरिवंसकुलाणि वा-हरिवंश कुल। एसियकुलाणि वा-गोपाल आदि कुल। वेसियकुलाणि वा-वैश्य कुल। गंडागकुलाणि वा-गण्डक-नापित कुल।कोट्टागंकुलाणि वा- बर्द्धकी-बढ़ई कुल। गामरक्खकुलाणि वा-ग्रामरक्षक कुल। वुक्कासकुलाणि वा-तन्तुवाय कुल। अन्नयरेसु-और भी। तहप्पगारेसु-इसी प्रकार के। कुलेसु-कुलों में। अदुगुञ्छिएसु-अनिन्दित।अगरहिएसुअगर्हित कुलों में। असणं वा ४-अशनादि चतुर्विध आहार। फासुयं-प्रासुक। जाव-यावत् मिलने पर। पडिग्गाहिज्जा- साधु ग्रहण करे। .
____ मूलार्थ–साधु अथवा साध्वी गृहस्थ के घर में प्रवेश करते हुए इन कुलों को जाने, यथा उग्रकुल, भोगकुल, राजन्य कुल, क्षत्रिय कुल, इक्ष्वाकुकुल,हरिवंशकुल, गोपालादिकुल, वैश्यकुल, नापित कुल, वर्द्धकी (बढ़ई ) कुल, ग्रामरक्षक कुल, और तन्तुवाय कुल तथा इसी प्रकार के और भी अनिन्दित, अगर्हित कुलों में से प्रासुक अन्नादि चतुर्विध आहार यदि प्राप्त हो तो साधु उसे स्वीकार कर ले।
हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि साधु को भिक्षा के लिए किन कुलों में जाना चाहिए। वर्तमान काल चक्र में भगवान् ऋषभदेव के पहले भरत क्षेत्र में भोगभूमि थी। वर्तमान काल चक्र के तीसरे आरे के तृतीय भाग में भगवान ऋषभदेव का जन्म हुआ था और उसके बाद भोग भूमि का स्थान कर्म भूमि ने ले लिया । भगवान ऋषभदेव ही प्रथम राजा, प्रथम मुनि, एवं प्रथम तीर्थंकर थे, इनके युग से राज्य व्यवस्था, समाज व्यवस्था एवं धर्म व्यवस्था का प्रारम्भ हुआ। उनके युग से वर्ण व्यवस्था एवं कुल आदि परम्परा का प्रचलन हुआ। उसी के आधार पर बने हुए कुलों का सूत्रकार ने उल्लेख किया है। जैसे-१-उग्र कल-रक्षक कल. जो जनता की रक्षा के लिए सदा सन्नद्ध तैयार रह २-भोग कुल- राजाओं के लिए सम्मान्य है । ३-राजन्य कुल- मित्र के समान व्यवहार करने वाला कुल, ४क्षत्रिय कुल-जो प्रजा की रक्षा के लिए शस्त्रों को धारण करता था। ५-इक्ष्वाकु कुल- भगवान ऋषभ देव का कुल, ६-हरिवंश कुल-भगवान अरिष्टनेमिनाथ का कुल, ७-एष्य कुल- गोपाल आदि का कुल, ८ग्राम रक्षक कुल- कोतवाल आदि का कुल, ९-गण्डक कुल- नाई आदि का कुल, १०- कुट्टाक , ११-वर्द्धकी और १२-वुक्कस- तन्तुवाय आदि के कुल एवं इसी तरह के अन्य कुलों से भी साधु आहार ग्रहण कर सकता है, जो निन्दित एवं घृणित कर्म करने वाले न हों।
प्रस्तुत प्रकरण में क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र इन तीनों का स्पष्ट उल्लेख हुआ है, परन्तु ब्राह्मण कुल का कहीं नाम नहीं आया। इसके दो कारण हो सकते हैं- १-ब्राह्मण वर्ण की स्थापना भगवान ऋषभदेव
१. भोगाः - राज्ञः पूजनीयाः । - आचारांगवृत्ति