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प्रकाशकीय परम श्रद्धेय स्व. आचार्य सम्राट् श्री आत्माराम जी म के व्यक्तित्व से प्रत्येक व्यक्ति परिचित है। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो श्रद्धेय आचार्य श्री जी की ज्ञान ज्योति से अपरिचित रहा हो। वह ज्ञान दिवाकर जब तक इस भूतल पर उदित रहा तब तक जन-जन के अज्ञान तम को दूर करके उनके जीवन के कण-कण में ज्ञान की ज्योति जगाता रहा, भूले-भटके पथिकों को साधना का पथ बताता रहा। आज वह ज्योतिर्धर महापुरुष भौतिक शरीर की अपेक्षा से हमारे मध्य में नहीं रहा, परन्तु उनके आगम की ज्योति हमारे सामने है, जो कि युग-युग तक मानव-मन को ज्योतित करती रहेगी।
___ श्रद्धेय आचार्य देव ने अपने जीवन काल में अठारह आगमों पर बृहद् व्याख्याएं लिखकर आगमों को सर्वगम्य बनाया था। श्रद्धेय श्री के व्याख्यायित कई आगम उनके जीवन काल में भी प्रकाशित हुए, कई उनके देवलोक गमन के पश्चात् भी प्रकाशित हुए। परन्तु आचार्य श्री का व्याख्यायित और सृजित साहित्य आज तक समग्र रूप से प्रकाशित नहीं हो पाया है। आचार्य देव के पौत्र शिष्य एवं उन्हीं के पाट पर विराजित आचार्य सम्राट् श्री शिवमुनि जी महाराज ने आचार्य देव के समस्त आगम और आगमेतर साहित्य को प्रकाशित करा कर सर्वसुलभ बनाने का महान संकल्प लिया है। आचार्य श्री के उसी संकल्प की फलश्रुति के रूप में श्री उपासकदशांग सूत्रम्, श्री उत्तराध्ययन सूत्रम्, भाग-१-२-३, श्री अनुत्तरौपपातिक सूत्रम्, श्री दशवैकालिक सूत्रम्, श्री अन्तकृद्दशांग सूत्रम्, श्री आचाराङ्ग सूत्रम् (प्रथम श्रुतस्कंध) आदि आगम हम प्रकाशित कर चुके हैं। भविष्य में हम द्रुतगति से अपने पथ पर आगे बढ़ते रहेंगे एवं आचार्य भगवन श्री शिवमुनि जी म० के दिशा निर्देशन में आराध्य आचार्य देव श्री आत्माराम जी म के समग्र साहित्य को सर्व सुलभ बनाएंगे, ऐसा हमारा विनम्र संकल्प है।
आचार्य देव ध्यान योगी श्री शिवमुनि जी म० का मंगलमय आशीर्वाद हमारे संकल्प का प्राण है। साथ ही असंख्य सहयोगी हाथ हमारे महद् कार्य को सरल बनाने में हमारे साथ जुड़ चुके हैं एवं निरंतर जुड़ते जा रहे हैं। समस्त सहयोगियों के हम हार्दिक आभारी हैं।
प्रकाशक
आत्म-ज्ञान-श्रमण-शिव आगम प्रकाशन समिति (लुधियाना)
एवं
भगवान महावीर रिसर्च एण्ड मेडिटेशन
सेंटर ट्रस्ट (नई दिल्ली)