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51. कायोत्सर्ग - मन, वचन एवं काय के व्यापार का त्याग करके आत्म चिन्तन में संलग्न होना, ध्यान 52. क्रियावादी - केवल क्रिया को ही मुक्ति का मार्ग मानने वाले विचारक
53. केवल ज्ञान- लोक में स्थित समस्त द्रव्यों के समस्त पर्यायों एवं भावों को जानने-देखने वाला ज्ञान, पूर्ण ज्ञान
54. गच्छ संघ, सम्प्रदाय
55. ग्राम धर्म प्रस्तुत प्रसंग में इसका अर्थ मैथुन है 56. ग्राम पिंडोलक भिखारी
,
57. गीतार्थ आगम एवं द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को सम्यक् रूप से जानने वाला साधक
58. गुप्ति - मन, वचन और काय - शरीर को गोपकर
रखना
59. गोचरी - भिक्षाचरी
60. ज्ञानवादी - ज्ञान मात्र को मुक्ति का कारण मानने वाले विचारक
61. घातिक कर्म आत्मा के मूल गुणों की घात करने वाले ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय कर्म
62. चरक संहिता आयुर्वेद का एक ग्रन्थ 63. चिल्मिलिका-मच्छरदानी
64. चोलपट्टक- धोती के स्थान में बाँधने का वस्त्र 65. छट्ठ भक्त-दो दिन का उपवास, बेला
66. छ: काय- पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति और स- द्वीन्द्रियादि जीव
67. जिनकल्पी जिन अर्थात् तीर्थंकर के समान आचार का परिपालन करने वाले मुनि
68. तीन करण-कृत, कारित और अनुमोदित किसी कार्य को करना, करवाना और उसका समर्थन करना
69 तीन योग-मन, वचन और काय शरीर 70. सजीव त्रास प्राप्त होने पर दुःख से बचने के लिए सुख के स्थान पर आ-जा सकने वाले प्राणी; द्वीन्द्रिय, तेन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय जीव 71. दीक्षाचार्य - साधुत्व की दीक्षा देने वाले आचार्य 72. दीक्षार्थी - संयम - साधना स्वीकार करने का इच्छुक साधक, वैरागी
73. देव- छन्दक - देवों द्वारा निर्मित चौतरा 74. नय-वस्तु में स्थित अनन्त धर्मों में से किसी एक
धर्म को लक्ष्य करके समझना
75. निगोद काय - वनस्पति के जीवों की एक जाति 76. निघन्दु-आयुर्वेद का एक ग्रन्थ
77.
निरावरण- आवरण से रहित
78. निर्ग्रन्थ-द्रव्य और भाव ग्रन्थि परिग्रह अथवा धन-धान्य आदि पदार्थों एवं क्रोधादि कषायों से निवृत्त साधु
79. निर्जरा - बन्धे हुए कर्मों का एक देश से क्षय होना 80. निर्वाण बन्धे हुए कर्मों का सर्वथा क्षय करके कर्म-बन्धन से मुक्त होना
निर्व्याघात - व्याघात रहित
परठना विवेकपूर्वक डाल देना, फेंकना
81.
82.
83. परीषह - भूख, प्यास, शीत, उष्ण, डंसमंस आदि
कष्ट
84. प्रकाम भोजन - विकारोत्पादक सरस आहार 85. प्रणीत रस - सरस पदार्थ
86.
परिशिष्ट
87. प्रतिलेखित - भली भाँति देखे हुए पदार्थ 88. प्रवर्तिनी - साध्वी संघ की संचालिका
प्रतिक्रमण - दिन एवं रात में लगे हुए दोषों की आलोचना
89. पश्चात् कर्म - साधु-साध्वी को आहार आदि पदार्थ देने के बाद पुनः अपने लिए आहार आदि
बनाना ।
90. पंडक नपुंसक, हिजड़ा, पुरुषत्व एवं नारीत्व से रहित
93.
94.
91. प्रासुक - दोष रहित, शुद्ध पदार्थ
92. पार्श्वापत्य - भगवान् पार्श्वनाथ के अपत्य-उपासक
या श्रावक
पार्श्वस्थ शिथिल आचार वाले, ढीले पासत्ये पिंडैषणा आहारादि की गवेषणा करना
95. पुद्गल परमाणु या परमाणुओं के मेल से बना
›
96. पुरीष मल-मूत्र
97. पुरुषान्तरकृत - नव निर्मित स्थान- मकान आदि, जिनका गृहस्थ ने उपयोग कर लिया है
98. भक्त पान आहार पानी, खाने-पीने के पदार्थ 99. भक्त - प्रत्याख्यान - जीवन पर्यन्त के लिए आहारपानी का त्याग करना
100. मतिज्ञान-मन और इंद्रियों की सहायता से होने
वाला सम्यग्ज्ञान