________________
४९७
पञ्चदश अध्ययन स्तु ये तत्र तान् भिक्षुः परिवर्जयेत्। स्पर्शतः जीवः मनोज्ञामनोज्ञान् स्पर्शान् प्रतिसंवेदयति, इति पंचमी भावना।
एतावता पंचमे महाव्रतं सम्यक् अवस्थितः आज्ञाया आराधकश्चापि भवति, पंचम भदन्त महाव्रतम् । इत्येतैः पंच महाव्रतैः पंचविंशत्या च भावनाभिः सम्पन्नः अनागारः यथाश्रुतं यथाकल्पं यथामार्ग कायेन स्पृष्ट्वा पालयित्वा तीा कीर्तयित्वा आज्ञाया आराधक-श्चापि भवति।
पदार्थ- तस्सिमाओ-उस महाव्रत की ये। पंच-पांच। भावणाओ-भावनाएं। भवंति-हैं। .. तत्थिमा-उन पांच भावनाओं में से। पढमा भावणा-प्रथम भावना यह है।णं-वाक्यालंकारार्थक है। जीवे-जीव। सोयओ-श्रोत्र इन्द्रिय से। मणुन्नामणुन्नाइं-मनोज्ञामनोज्ञ अर्थात् प्रिय और अप्रिय। सद्दाइं-शब्दों को। सुणेइ-सुनता है किन्तु। मणुनामणुन्नेहि-प्रिय और अप्रिय। सद्देहि-शब्दों में। नो सजिजा-आसक्त न हो। नो रजिजा-अनुरक्त-राग युक्त न हो। नो गिझेजा-गृद्धि वाला न हो। नो मुज्झिज्जा-मोहित या मूर्च्छित न हो। नो अज्झोववजिजा-अत्यन्त आसक्त न हो। नो विणिघायमावजिज्जा-और विनाश को प्राप्त न हो अर्थात् राग-द्वेष न करे कारण कि। केवली बूया-केवली भगवान कहते हैं कि यह कर्म बन्ध का हेतु है। णंपूर्ववत्। निग्गंथे-निर्ग्रन्थ-साधु। मणुन्नामणुन्नेहि-मनोज्ञामनोज्ञ-प्रिय और अप्रिय।सद्देहि-शब्दों में।सज्जमाणेआसक्त होता हुआ।रजमाणे राग करता हुआ।जाव-यावत्। विणिघायमावजमाणे-राग-द्वेष करता हुआ। संतिभेया-शांति का भेदक।संतिविभंगा-शान्ति रुप अपरिग्रहव्रत का भेदक।संति केवलीपन्नत्ताओ-शान्ति रूप केवलि प्रणीत-केवली भाषित। धम्माओ-धर्म से। भंसिजा-भ्रष्ट हो जाता है अर्थात् धर्म से पतित हो जाता है। सोतविसयभागया-श्रोत्र विषय में आए हुए। सद्दा-शब्द। न सक्का-समर्थ नहीं। न सोउं-न सुनने को अर्थात् आने वाले शब्द अवश्य सुने जाते हैं किन्तु। जे-जो। तत्थ-यहां पर। रागदोसा-राग-द्वेष है। उ-वितर्क में है। तं'उसको अर्थात् राग-द्वेष को। भिक्खू-भिक्षु-साधु। परिवजए-छोड़ दे। सोयओ-श्रोत्र से। जीवे-जीव-साधु। मणुनामणुन्नाइं-प्रिय और अप्रिय। सद्दाइं-शब्दों को।सुणेइ-सुनता है किन्तु उन पर रागद्वेष नहीं लाता। पढमा भावणा-यह प्रथम भावना है।
अहावरा दुच्चा भावणा-अब दूसरी भावना को कहते हैं। जीवो-जीव। चक्खुओ-चक्षु से-चक्षु द्वारा।मणुनामणुनाइं-मनोज्ञामनोज्ञ प्रिय और अप्रिय।रूवाइं-रूयों को।पासइ-देखता है, फिर।मणुन्नामणुन्नेहिमनोज्ञामनोज्ञ। रूवेहि-रूपों में। सजमाणे-आसक्त होता हुआ। जाव-यावत्। विणिघायमावजमाणे-रागद्वेष के वशीभूत हो कर विनाश को प्राप्त होता हुआ। संतिभेया-शान्ति भेद। जाव-यावत्। भंसिजा-धर्म से भ्रष्ट हो जाता है। चक्खुविसयमागयं-चक्षु विषय को प्राप्त हुआ। रूवं-रूप। अदट्टुं न सक्का -अदृष्ट नहीं रह सकता अर्थात् वह दिखाई देगा ही किन्तु। तत्थ-वहां पर। जे-जो। रागदोसा-रागद्वेष उत्पन्न होता है। तं-उसको। भिक्खू-भिक्षु-साधु। परिवज्जए-त्याग दे-छोड़ दे। उ-वितर्क में है।