SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 493
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५८ श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध इस पाठ से यह स्पष्ट होता है कि उस युग में भी दिवस, मुहूर्त एवं नक्षत्र आदि देखने की परम्परा थी। और पंच मुष्टि लोच एवं अलंकारों आदि के उतारने का उल्लेख करके भगवान की सहिष्णुत्ता, त्याग एवं तप भावना को दिखाया है। कुछ प्रतियों में जन्नुवायपडियाए' के स्थान पर 'भत्तुव्वायपडियाए' पाठ उपलब्ध होता है। भगवान की दीक्षा के समय वातावरण को शान्त बनाए रखने के लिए इन्द्र के द्वारा सभी वादिंत्रों को बन्द करने का आदेश देने का उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैंमूलम्-दिव्वो मणुस्सघोसो, तुरियनिनाओ य सक्कवयणेणं। खिप्पामेव निलुक्को, जाहे पडिवजइ चरित्तं ॥१॥ पडिवजित्तु चरित्तं अहोनिसं सव्वपाणभूयहियं। साह? लोमपुलया सव्वे देवा निसामिंति॥२॥ छाया- दिव्यो मनुष्यघोषः, तूर्यनिनादश्च शक्रवचनेन। क्षिप्रमेव निर्लुप्तः, यदा प्रतिपद्यते चरित्रम्॥१॥ प्रतिपद्य चरित्रं अहर्निशं सर्वप्राणिभूतहितम्। संहृत्य रोमपुलकाः सर्वे देवा निशामयंति॥२॥ . पदार्थ-जाहे-जब भगवान। चरित्तं-चारित्र को।पडिवज्जइ-ग्रहण करने लगे तो। दिव्वो-देवों के श्रेष्ठ शब्द तथा। मणुस्सघोसो-मनुष्यों के शब्द।य-और। तुरियनिनाओ-वाजन्तरों के शब्द।सक्कवयणेणंशक्रेन्द्र के वचन से। खिप्पामेव-शीघ्र ही। निलुक्को-बन्द कर दिए गए। ___ चरित्तं-चारित्र को। पडिवजित्तु-ग्रहण करके।अहोनिसं-रात-दिन।सव्वपाणभूयहियं-भगवान ने सर्व प्राण,भूत, जीवों के हित के लिए चारित्र ग्रहण किया। साहटुलोमपुलया-जिनकी रोम राजी पुलकित हो रही है ऐसे। सव्वे देवा-सभी देव। निसामिंति-इसे सुनते हैं अर्थात् सहर्ष श्रवण करते हैं मूलार्थ-जिस समय भगवान सामायिक चारित्र ग्रहण करने लगे, उस समय शक्रेन्द्र की आज्ञा से सभी वादिंत्रों आदि से होने वाले शब्द बन्द कर दिए गए। सामायिक चारित्र ग्रहण करके भगवान रात-दिन सब प्राणियों के हित में संलग्न हुए, अर्थात् वे सभी प्राणियों की रक्षा करने लगे। सभी देवों ने हर्षित भाव से यह सुना कि भगवान ने संयम स्वीकार कर लिया है। हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत उभय गाथाओं में यह अभिव्यक्त किया गया है कि जिस समय भगवान सामायिक चारित्र ग्रहण करने लगे उस समय शक्रेन्द्र ने सभी प्रकार के वादिंत्रों को बन्द करने का आदेश दिया और उसके आदेश से सभी देव एवं मानव शान्त चित्त से भगवान के चारित्र ग्रहण करने के . उद्देश्य को सुनने लगे। इस में यह स्पष्ट बताया गया है कि चारित्र सर्व प्राणियों का हितकारक है, प्राणिमात्र के प्रति मैत्रीभाव को अभिव्यक्त करने तथा प्राणिमात्र की रक्षा करने के उद्देश्य से ही साधक साधना के या साधुत्व के पथ पर कदम रखता है।
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy