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________________ पञ्चदश अध्ययन ४४१ साधना .पथ पर गतिशील होने के लिए तैयार हो गए। कुछ प्रतियों में नाय कुल निव्वत्ते' के स्थान पर 'नायकुलचन्दे' पाठ भी उपलब्ध होता है। और प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त 'विदेहदिन्ने' आदि पदों पर वृत्तिकार ने यह अर्थ किया है कि वज्र ऋषभ नाराच संहनन और समचौरस संस्थान से जिसका देह शोभायमान है उसे विदेह कहते हैं। और भगवान की माता का नाम विदेहदत्ता था, अतः इस दृष्टि से भगवान को विदेह दिन्न भी कहते हैं । 'विच्छड्डिता'आदि पदों का कल्प सूत्र की वृत्ति में विस्तार से वर्णन किया गया है। ____ अब भगवान द्वारा दिए गए सांवत्सरिक दान का वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैंमूलम्- संवच्छरेण होहिइ अभिनिक्खमणं तु जिणवरिंदस्स। तो अत्थसंपयाणं, पवत्तई पुव्वसूराओ।१। एगा हिरण्णकोडी, अद्वैव अणूणगा सयसहस्सा। सूरोदयमाईयं दिजइ जा पायरासुत्ति।२। तिन्नेव य कोडिसया अट्ठासीइं च हुंति कोडीओ। असिइं च सयसहस्सा, एयं संवच्छरे दिन्नं।३। वेसमणकुंडधारी, देवा लोगंतिया महिड्डीया। बोहिंति य तित्थयरं पन्नरससुं कम्मभूमीसु।४। बंभंमि य कप्पंमी बोद्धव्वा कण्हराइणो मज्झे। लोगंतिया विमाणा, अट्ठसु वत्था असंखिजा।५। एए देवनिकाया भगवं बोहिंति जिणवरं वीरं। सव्वजगज्जीवहियं अरिहं ! तित्थं पवत्तेहि।६। छाया- सम्वत्सरेण भविष्यति अभिनिष्क्रमणं तु जिनवरेन्द्रस्य। ततः अर्थसम्पदा प्रवर्तते पूर्वं सूर्यात्।। एका हिरण्यकोटि: अष्टैव अन्यूनकाः शतसहस्राः। सूर्योदयादादौ दीयते या प्रातराश इति।। १ विदेहे वज्रऋषभनाराचसंहननसमचतुरस्रसंस्थानमनोहरत्वात् विशिष्टो देहो यस्य स विदेहः विदेहदिन्ने-विदेहदिन्ना त्रिशला तस्या अपत्यं वैदेहदिन्नः। विदेहजच्चे विदेहा त्रिशला तस्यां जाता अर्चा-शरीरं यस्य सः। -आचारांग वृत्ति। २ विच्छड्डइत्ता-विच्छर्घ-विशेषेण त्यक्त्वा, पुनः किं कृत्वा ? विगोवइत्ता-विगोप्य तदेव गुप्तं सद्दानातिशयात् प्रकटीकत्येति भावः, अथवा विगोप्य-कत्सनीयमेतदस्थिरत्वादित्युक्त्वा, पुनः किं कृत्वा ? दाणं दायारेहिं परिभाइत्ता-दीयते इति दानं तत् दायाय-दानार्थ आर्च्छति आगच्छन्तीति दायारा-याचकास्तेभ्यः परिभाज्य विभागैर्दत्वा, यद्वा परिभाव्यआलोच्य, इदं अमुकस्य देयं, इदं अमुकस्यैवं विचार्येत्यर्थः पुनः किं कृत्वा ? दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता-दानं धनं दायिकागोत्रिकास्तेभ्यः परिभाज्य-विभागशो दत्त्वा इत्यर्थः । - कल्पसूत्र, सुबोधिका वृत्ति।
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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