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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध मूलम्- जण्णं रयणिं तिसला ख• समणं पसूया तण्णं रयणिं भवणवइवाणमंतरजोइसियविमाणवासिणो देवा य देवीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स सूइकम्माइं तित्थयराभिसेयं च करिंसु। ...
___ छाया- यस्यां रजन्यां त्रिशला क्षत्रियाणी श्रमणं भगवन्तं महावीरं प्रसूता (प्रसूतवती) तस्यां रजन्यां भवनपतिवाणव्यन्तर-ज्योतिषिकविमानवासिनो देवाश्च देव्यश्च श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य शुचिकर्माणि तीर्थंकराभिषेकं च अकार्षः।
पदार्थ-जण्णं रयणिं-जिस रात्रि में। तिसला ख-त्रिशला क्षत्रियाणी ने।समणं भगवं महावीरंश्रमण भगवान महावीर को। पसूया-जन्म दिया। तण्णं रयणिं-उस रात्रि में। भवणवइवाणमंतरजोइसियविमाणवासिणो-भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और विमान वासी। देवा य-देव और। देवीओ य-देवियों ने। समणस्स भगवओ महावीरस्स-श्रमण भगवान महावीर का। सूइकम्माइं-शुचिकर्म। चऔर। तित्थयराभिसेयं-तीर्थंकराभिषेक।करिंसु-किया।
मूलार्थ-जिस रात में त्रिशला क्षत्रियाणी ने श्रमण भगवान महावीर को जन्म दिया, उसी रात्रि में भवन पति, वाणव्यन्तर ज्योतिषी और वैमानिक देव और देवियों ने श्रमण भगवान महावीर का शुचि कर्म और तीर्थंकराभिषेक किया।
हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में भगवान के जन्मोत्सव का उल्लेख किया गया है। भगवान का जन्म होने पर ५६ दिशा कुमारियों ने भगवान का शुचि कर्म किया और ६४ इन्द्रों ने भगवान को मेरु पर्वत के पण्डक वन में ले जाकर उनका जन्म अभिषेक किया। इसका विस्तृत वर्णन जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में किया गया है और उसी के आधार पर कल्पसूत्र में भी उल्लेख किया गया है। प्रस्तुत सूत्र में तो केवल प्रासंगिक संकेत रूप से उल्लेख किया गया है।
____ कुछ प्रतियों में "सूइकम्माई" के स्थान पर "कोतुगभूतिकम्माई" पाठ उपलब्ध होता है। जिसका अर्थ है- देव-देवियों ने विभिन्न मांगलिक कार्य किए।
भगवान के नाम संस्कार के सम्बन्ध में उल्लेख करते हुए. सूत्रकार कहते हैंमूलम्- जओ णं पभिइ भगवं महावीरे तिसलाए ख० कुच्छिसि गब्भं
१ खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चुलहिमवंताओ वासहरपव्वयाओ गोसीसचंदण कट्ठाई साहरह, तएणं ते अभिओगा देवा बाहिरुयग मज्झवत्थव्वाहिं चउहिं दिसाकुमारी महत्तरिआहिं॰ एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठा ! जाव विणएणं वयणं पडिच्छंति २ त्ता खिप्पामेव चुल्ल हिमवंताओ वासहरपव्वयाओ सरसाइं गोसीस चन्दण कट्ठाई साहरन्ति, तएणं ताओ मझिमरुअगवत्थव्वाओ चतारि दिसाकुमारीमहत्तरिआओ सरगं करेंति २ त्ता अरणिं घडेंति २ अरणिं घडित्ता सरएणं अरणिं महिंति २ ता अग्गिं पाडेंति २ ता अग्गिं संधुक्खेंति २ त्ता गोसीस चंदण कढे पक्खिवंति २ त्ता अग्गिं उज्जालंति २ ता . समिहाकट्ठाई पक्खिवंति २त्ता अग्गिहोमं करेंति २त्ता भूतिकम्मं करेंति २त्ता-रक्खापोट्टलियं बंधन्ति बन्धेत्ता णाणा मणिरयणभत्तिचित्ते दविहे पाहाणवट्टगोलए गहाय भगवओ तित्थयरस्स कण्णमूलंमि टिट्टिआवेति भवउ भयवं पव्वघाउए ।
- जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र।