SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 440
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ सप्तसप्तिकाख्या द्वितीय चूला- परक्रिया॥ त्रयोदश अध्ययन __ (परक्रिया) प्रस्तुत अध्ययन में साधु के लिए दूसरे व्यक्ति द्वारा की जाने वाली क्रियाओं के सम्बन्ध में उल्लेख किया गया है। अतः इस अध्ययन का नाम 'परक्रिया' रखा गया है। 'पर' शब्द का ६ प्रकार से कथन किया गया है- १ तत्पर, २ अन्यतर पर, ३ आदेश पर। ४ क्रम पर, ५ बहु पर और ६ प्रधान पर। ... १ तत्पर- एक परमाणु दूसरे परमाणु से भिन्न होने के कारण उसे तत्पर कहते हैं अर्थात् वह परमाणु तत्- उस परमाणु से पर-भिन्न है। २ अन्यतर पर - एक द्रव्य दो परमाणु से युक्त, दूसरा तीन परमाणु से युक्त है और इसी तरह अन्य द्रव्य अन्य अनेक परिमाण वाले परमाणुओं से युक्त हैं, इस तरह वे परस्पर एक-दूसरे से अन्यतर हैं, यही अन्यतर पर कहलाता है। ... ३ आदेश पर- किसी व्यक्ति के आदेश पर कार्य करना आदेश पर कहलाता है। क्योंकि आदेश का परिपालक आदेश देने वाले से भिन्न है। जैसे- नौकर अपने स्वामी या अधिकारी के आदेश पर कार्य करते हैं। ४ क्रम पर- जैसे एक प्रदेशी द्रव्य से, द्वि प्रदेशी द्रव्य क्रम पर है। इसी प्रकार इस से आगे की संख्या की भी कल्पना की जा सकती है। संख्या के क्रम से जो पर हों उन्हें क्रम पर कहते हैं। ५ बहु पर- एक परमाणु से तीन या चार परमाणु वाले द्रव्य बहु पर हैं, क्योंकि उनकी भिन्नता एक से अधिक परमाणुओं में हैं। . ६ प्रधान पर- पद की प्रधानता के कारण जो अपने सजातीय पदार्थो से भिन्न है, उसे प्रधान पर कहते हैं। जैसे- मनुष्यों में तीर्थंकर भगवान प्रधान हैं, पशुओं में सिंह और वृक्षों में अर्जुन, सुवर्ण और अशोक वृक्ष प्रधान माना गया है। ___ . इससे यह स्पष्ट हो गया कि जो व्यक्ति अपने से भिन्न है, उसे पर कहते हैं। अतः साधु भिन्न गृहस्थ के द्वारा साधु के लिए की जाने वाली क्रिया को पर क्रिया कहते हैं। उक्त परक्रियाओं का उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं ___ मूलम्- परकिरियं अज्झत्थियं संसेसियं नो तं सायए नो तं नियमे, सिया से परो पाए आमज्जिज वा पमज्जिज्ज वा नो तं सायए नो तं नियमे। से सिया परो पायाइं संवाहिज्ज वा पलिमद्दिज वा नो तं सायए नो तं नियमे। से
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy