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॥ सप्तसप्तिकाख्या द्वितीय चूला- रूपसप्तैकका॥
द्वादश अध्ययन (चक्षु-इन्द्रिय)
एकादश अध्ययन में श्रुतेन्द्रिय के विषय का वर्णन किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन में चक्षु इन्द्रिय से संबद्ध विषय का वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्- से भि. अहावेगइयाई रूवाइं पासइ, तं-गंथिमाणि वा वेढिमाणि वा पूरिमाणिवा संघाइमाणि वा कट्ठकम्माणि वा पोत्थकम्माणि वा चित्तक० मणिकम्माणि वा दंतक पत्तछिजकम्माणि वा विविहाणि वा वेढिमाइं अन्नयराइं विरू० चक्खुदंसणपडियाए, नो अभिसंधारिज गमणाए, एवं नायव्वं जहा सद्दपडिमा सव्वा वाइत्तवज्जा रूवपडिमावि त्तिबेमि पंचमं सत्तिक्कयं ॥१७१॥ .. छाया- स भि. अथाप्येककानि रूपाणि पश्यति, त० ग्रथितानि वा वेष्टिमानि वा पूरिमाणि वा संघातिमानि वा काष्ठकर्माणि वा पुस्तककर्माणि वा चित्रकर्माणि वा मणिकर्माणि वा दन्तकर्माणि वा पत्रछेद्यकर्माणि वा विविधानि वा वेष्टिमानि अन्य विरूप चक्षुर्दर्शनप्रतिज्ञया नाभिसन्धारयेद् गमनाय॥एवं ज्ञातव्यं यथा शब्दप्रतिमा सर्वा वादिनवा रूपप्रतिमा अपि। पंचमं सप्तैककमध्ययनम् समाप्तम्।
___ पदार्थ-से भि०-वह साधु अथवा साध्वी।अहावेगइयाइं-कभी कई तरह के। रूवाइं-रूपों को। पासइ-देखता है। तं-जैसे कि। गंथिमाणि वा-गूंथे हुए पुष्पों से निष्पन्न स्वस्तिकादि का। वेढिमाणि वा-वस्त्र से वेष्टित अथवा निष्पन्न पुत्तलिकादि का।पूरिमाणि वा-अनेक पदार्थों से निर्मित पुरुषाकृति।संघाइमाणि वानानाप्रकार के वर्णों को एकत्रित करके उससे निर्मित्त चोलकादि या। कट्ठकम्माणि वा-काष्ठ के द्वारा निर्मित कई पदार्थ। पोत्थकम्माणि वा-पुस्तक कर्म ताड़पत्रादि से निष्पन्न पुस्तकादि वस्तु। चित्तक-चित्रकर्म भीत आदि पर चित्रित चित्र आदि। मणिकम्माणि वा-नाना प्रकार की मणियों द्वारा निर्मित स्वस्तिकादि पदार्थ। दंतक-दान्तों से निष्पन्न चूड़ियां आदि पदार्थ । पत्तछिज्जकम्माणि वा-पत्र छेदन क्रिया से उत्पन्न रूपादि तथा अन्य। विविहाणि-विविध प्रकार के। वेढिमाइं-वेष्टनों से निष्पन्न हुए। तह-इसी तरह के। अन्नयराइं-कई एक। विरू०-विविध रूपों वाले पदार्थों के रूपों को। चक्खुदंसणपडिमाए-चक्षु से देखने की प्रतिज्ञा से। नो अभिसंधारिज गमणाए-साधु उस ओर जाने का मन में विचार न करे। एवं-इस प्रकार। नायव्वं-जानना चाहिए। जहा-जैसे कि। सद्दवडियाए-शब्द सम्बन्धि प्रतिज्ञा का वर्णन किया गया है वह। सव्वा-सब।