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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध सुनने के लिए। नो अभिसं०-जाने का मन में विचार न करे।
से भि०-साधु या साध्वी। जाव-यावत्। सुणेइ-शब्दों को सुनता है। तं-जैसे कि।कलहाणि वाकलह के शब्द। डिंबाणि वा-स्वचक्र-राजा के स्वदेश में परस्पर होने वाले विरोध के शब्द। डमराणि वा-पर राज्य के विरोधी शब्द। दोरजाणि-दो राजाओं के परस्पर विरोधी शब्द। वेर०-परस्पर वैर विरोध के शब्द तथा। अन्न-अन्य। तह-तथाप्रकार के। सद्दाइं-शब्दों को सुनने के लिए। नो अभिसं०-जाने का मन में विचार न करे।
से भि-वह साधु या साध्वी। जाव सुणेइ-यावत् विभिन्न प्रकार के शब्दों को सुनता है। तं-जैसे कि। परिवुत्तमंडियं-परिवार से घिरी हुई, आभूषणों से मंडित और। अलंकियं-अलंकृत हुई। निबुज्झमाणिंघोड़े आदि पर बैठाकर ले जाती हुई को।खुड्डियं वा-छोटी। दारियं-बालिका। पेहाए-देखकर।वा-अथवा। एगं पुरिसं-किसी एक अपराधी पुरुष को। वहाए-वध के लिए। नीणिजमाणं-वध्य भूमि में ले जाते हुए को। पेहाए-देखकर।वा-अथवा।अन्नयराणि-अन्य। तह-तथाप्रकार के शब्दों को सुनने के लिए। नो अभिसं०जाने का मन में विचार न करे। से भि०-वह साधु अथवा साध्वी अन्न-अन्य कोई। विरूव-नाना प्रकार के। महासवाई-महान आश्रव के स्थानों को। एवं-इस प्रकार। जाणिज्जा-जाने। तं०-जैसे कि। बहुसगडाणि वाबहुत से शकटों के स्थान। बहुरहाणि वा-बहुत से रथों के स्थान अर्थात् जहां पर शकट और रथ दोनों बहुत संख्या में रहते हैं वह स्थान।वा-या। बहुमिलक्खूणि-बहुत से म्लेछों के स्थान या। बहुपच्चंताणि वा-बहुत से प्रान्त निवासियों के स्थान तथा। अन्न-अन्य कोई। तह-तथाप्रकार के। विरूवरूवाइं-नाना विध। महासवाइंमहान आश्रवों के स्थान, उनमें जो शब्द होते हैं उनको। कन्नसोयपडियाए-कानों से सुनने की प्रतिज्ञा से। नो अभिसंधारिज गमणाए-सम्मुख होकर जाने का मन में विचार न करे।
से भि०-वह साधु या साध्वी।अन्न विरूवरूवाइं-अन्य कई नाना प्रकार के महुस्सबाई-महोत्सवों के स्थानों को। एवं जाणिज्जा-इस प्रकार जाने। तं-जैसे कि। इत्थीणि वा-स्त्रियां या। पुरिसाणि वा-पुरुष या। थेराणि वा-वृद्ध या। डहराणि वा-बालक या। मज्झिमाणि वा-मध्यम वय वाले-युवक, जो कि। आभरणविभूसियाणि वा-आभूषणों से शरीर को विभूषित करके। गायंताणि वा-गाते। वायंताणि वाबजाते हुए।वा-या। नच्चंताणि-नाचते हुए। हसंताणि-हंसते हुए।रमंताणि वा-क्रीड़ा करते हुए या।मोहंताणि वा-रतिक्रीड़ा करते हुए या इसी प्रकार। विपुलं-अत्यन्त। असणं-अन्न। पाणं-पानी। खाइम-खादिम-खाद्य पदार्थ। साइमं-स्वाद्य पदार्थ। परि जंताणि वा-भोगते हुए तथा। परिभायंताणि वा-आहार-पानी का विभाग या वितीर्ण करते हुए या। विछड्डियमाणाणि वा-उसे फेंकते हुए या।विगोवयमाणाणि वा-प्रसिद्ध करते हुए जा रहे हों उस समय के शब्दों तथा। अन्नय०-अन्य। तह-इसी तरह के। विरूव-विविध। महु०-महोत्सवों में होने वाले शब्दों को। कन्नसोय-कानों से सुनने की प्रतिज्ञा से। नो अभिसं०-जाने का मन में संकल्प न करे।
से भि०-वह साधु या साध्वी। नो इहलोइएहिंस-न तो इस लोक के शब्दों को अर्थात् मनुष्यादि के शब्दों में। नो परलोइएहिंसा-न परलोक के शब्दों में अर्थात् मनुष्य भिन्न देव और कोकिला आदि तिर्यंचों के शब्दों में। नो सुएहिं स०-न सुने हुए शब्दों में। नो असुएहिं स०-न अश्रुत नहीं सुने हुए शब्दों में। नो दिठेहिं सद्देहि-न देखे हुए शब्दों में और। नो अदिठेहिं स-न अदृष्ट शब्दों में तथा। नो कंतेहिं सद्देहि-न कमनीय शब्दों में। सजिज्जा-आसक्त हो। नो गिज्झिज्जा-न उनके सुनने की आकांक्षा करे। नो मुज्झिजा-न उनमें