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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध अस्सक-घोड़ों को बान्धने का स्थान हो या।कुक्कुडक०-मुर्गे कुक्कुड़ को रखने की जगह हो या।मक्कडकाबन्दर को रखने का स्थान हो या। गयक-हाथी को बांधने का स्थान हो या। लावयक-लावक पक्षी को रखने का स्थान हो या। चट्टयक-चटक-चिड़िया को रखने का स्थान हो या। तित्तिरक-तित्तर को रखने का स्थान हो या। कवोयक-कपोत-कबूतर को रखने का स्थान हो या। कविंजलकरणाणि वा-कपिंजल (जीव विशेष) को रखने का स्थान। अर्थात् इन पूर्वोक्त जीवों के रहने के जो स्थान हों तथा इन जीवों का उद्देश्य रखकर जहां पर इनके लिए उक्त क्रियाएं की जाती हों अथवा।अन्नयरंसि वा-अन्य इसी प्रकार के स्थान हों तो उन स्थानों में। नो उ०-मल मूत्रादि का त्याग न करे।
से भि०-वह साधु या साध्वी। से जं. जाणेजा-वह पुनः स्थंडिल के सम्बन्ध में जाने कि। बेहाणसट्ठाणेसु वा-जहां पर मनुष्य फांसी लेते हों उन स्थानों में। गिद्धपट्ठठा वा-जहां पर मरने की इच्छा से गृध्रादि पक्षियों के स्थान पर शरीर को रुधिर से संसृष्ट करके लेट जाते हों ऐसे स्थानों में।तरुपडणट्ठाणेसुवाजहां वृक्ष से गिर कर या। मेरुपडणठा०-पर्वत से गिर कर मरते हों ऐसे स्थानों में या। बिसभक्खणयठा०-जहां पर लोग विष भक्षण कर आत्म हत्या करते हों उन स्थानों में या।अगणिपडणट्ठा-जहां पर लोग आग में कूद कर मरते हों उन स्थानों में या। अन्नयरंसि वा-ऐसा अन्य कोई स्थान हो तो।तह-तथाप्रकार के स्थानों में। नो उ०मल मूत्रादि का त्याग न करे।
से भि०-वह साधु या साध्वी।से जं-वह पुनः स्थंडिल भूमि के सम्बन्ध में जाने कि।आरामाणि वाआराम-बाग।उजाणाणि वा-उद्यान।वणाणि वा-वनावणसंडाणिवा-वनषंड बृहदवन अथवा।देवकुलाणि वा-देवकुल-यक्ष आदि के मन्दिर। सभाणि वा-या सभा का स्थानं जहां पर लोग एकत्रित हो कर बैठते हों या। पवाणि वा-पानी पीने का स्थान जहां पर जनता को पानी पिलाया जाता है या।अन्नयरंसि वा-अन्यातह-इसी प्रकार के स्थानों में। नो उ०-मल मूत्रादि का त्याग न करे।
से भिक्खू-वह साधु अथवा साध्वी। से जं-वह। पुण-फिर। जा०-स्थंडिल भूमि के सम्बन्ध में जाने कि।अट्टालयाणि वा-प्राकार के ऊपर युद्ध करने का स्थान उसमें।चरियाणि वा-राजमार्ग में। दाराणि वा-नगर के द्वार पर।गोपुराणि वा-नगर को बड़े द्वार पर।अन्नयरंसि वा-ऐसा अन्य कोई स्थान हो तो। तह.तथाप्रकार के स्थंडिल में। नो उ०-मल मूत्रादि का त्याग न करे।
से भि०-वह साधु या साध्वी। से जं. जाणेजा-वह पुनः स्थंडिल भूमि के सम्बन्ध में जाने कि। तिगाणि वा-जहां नगर में तीन मार्ग मिलते हों उस स्थान में या। चउक्काणि वा-चौराहे पर।(चौरास्ते में ) तथा। चच्चराणि वा-जहां बहुत से मार्ग मिलते हों उस स्थान में। चउम्मुहाणि वा-चार मुख वाले स्थान में तथा। अन्नयरंसि वा-ऐसे ही अन्य किसी। तह-तथाप्रकार के स्थान में। नो उ०-मल मूत्रादि का त्याग न करे। .
सेभिः-वह साधुया साध्वी।से जं जाणे०-वह पुनः स्थंडिल भूमि के सम्बन्ध में जाने कि। इंगालदाहेसु वा-जहां पर काष्ठ जला कर कोयले बनाए गए हों या। खारदाहेसु वा-जहां पर सब्जी आदि क्षार पदार्थ बनाए जाते हों या। मडयदाहेसुवा-श्मशान भूमि में जहां पर मृतक जलाए जाते हों। मडयथूभियासु वा-जहां मृतकस्तूप हों या। मडयचेइयेसु वा-जहां मृतक चैत्य हों। अन्नयरंसि वा-अन्य कोई। तह-इसी प्रकार का स्थान हो तो उसमें। नो उ०-मल मूत्रादि का त्याग न करे।
से भि०-वह साधु या साध्वी। से जं पुण जाणेजा-वह फिर स्थंडिल भूमि के सम्बन्ध में जाने कि।