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॥ सप्तसप्तिकाख्या द्वितीय चूला- निषीधिका॥
नवम अध्ययन
(स्वाध्याय-भूमि) अष्टम अध्ययन में कायोत्सर्ग का वर्णन किया गया, और प्रस्तुत अध्ययन में स्वाध्याय पर विचार अभिव्यक्त किए गए हैं। इसी कारण प्रस्तुत अध्ययन का निषीधिका नाम रखा गया है। मूल पाठ में 'निसीहियं' शब्द का प्रयोग किया गया है, संस्कृत में इसके "निषीधिका और निशीथिका" दोनों रूप बनते हैं। आचारांग वृत्ति के संपादक ने इस बात को नोट में स्पष्ट कर दिया है। परन्तु, निषीधिका पद अधिक प्रसिद्ध होने के कारण यह अध्ययन 'निषीधिका' के नाम से ही प्रसिद्ध है। अतः इस अध्ययन में स्वाध्याय भूमि कैसी होनी चाहिए तथा साधक को किस तरह से स्वाध्याय में संलग्न रहना चाहिए, इसे स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं
___ मूलम्- से भिक्खू वा अभिकं निसीहियं फासुयं गमणाए, से पुण निसीहियं जाणिज्जा-सअंडं तह अफा० नो चेइस्सामि।से भिक्खू अभिकंखेज्जा निसीहियं गमणाए, से पुण नि अप्पपाणं अप्पबीयं जावसंताणयंतह निसीहियं फासुयं चेइस्सामि, एवं सिज्जागमेणं नेयव्वं जाव उदयप्पसूयाइं।जे तत्थ दुवग्गा तिवग्गा चउवग्गा पंचवग्गा वा अभिसंधारिंति निसीहियं गमणाए ते नो अन्नमन्नस्स कायं आलिंगिज्ज वा विलिंगिज्ज वा चुंबिज वा दंतेहिं वा नहेहिं वा अच्छिदिज वा वुच्छिं, एवं खलु जं सव्वठेहिं सहिए समिए सया जएज्जा, सेयमिणं मन्निज्जासि त्तिबेमि॥१६४॥
__छाया- स भिक्षुर्वाः अभिका निषीधिकां प्रासुकां गन्तुं [गमनाय] सः पुनः निषीधिकां जानीयात्-साण्डां तथा अप्रा० नो चेतयिष्यामि स भि० अभिका निषीधिकां गन्तुं (गमनाय) स पुनः)नि अल्पप्राणां अल्पबीजां यावत् ससन्तानकां तथा निषीधिकां प्रासुकां चेतयिष्यामि। एवं शय्यागमेन नेतव्यं यावत् उदकप्रसूतानि॥ये तत्र द्विवर्गाः त्रिवर्गाः चतुर्वर्गाः पञ्चवर्गाः वा अभिसन्धारयन्ति निषीधिकांगन्तुं (गमनाय)ते नो अन्योऽन्यस्य कायमालिंगेयुः वा लिंगेयुः वा चुम्बेयुः वा दन्तैर्वा नखैर्वा आच्छिन्देयुः वा व्युच्छिंदेयुः वा एवं तत् खलु तस्य भिक्षोः २ सामग्र्यं यत् सर्वार्थैः सहितः समितः सदा यतेत श्रेयं इदं मन्येत। इति ब्रवीमि।
__ पदार्थ- से भिक्खू वा २-वह साधु अथवा साध्वी। निसीहियं-स्वाध्याय करने के लिए उपाश्रय
१ निशीथनिषीधयोः प्राकृते एकेन निसीहशब्देन वाच्यत्वात् एवं निक्षेपवर्णनं, तथा च निषीधिका निशीथिकेत्युभयमपि संमतमभिधानयोः।
- आचारांग वृत्ति (टिप्पणी)