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________________ ३६८ श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध साध्वी। अहासंथडमेव-जो पहले ही संस्तृत हो रहा है अर्थात् बिछा हुआ है। उग्गहं जाइज्जा-उस अवग्रह की याचना करूंगा।तं-जैसे कि।पुढविसिलं वा-पृथ्वी शिला। कट्ठसिलं वा-काष्ठशिला अथवा।अहासंथडमेवउस उपाश्रय में पलाल आदि पहले ही बिछा हो। तस्स लाभे संते-उसके लाभ होने पर उस पर आसन करे। तस्स-उसके। अलाभे-न मिलने पर। उ०-उत्कुटुक आसन से अथवा। नि०-निषद्यादि आसन पर। विहरिजाविचरे।सत्तमा पडिमा-यह सातवीं प्रतिमा है। इच्चेयासिं-इन पूर्वोक्त।सत्तण्हं-सात। पडिमाणं-प्रतिमाओं में से साधु ने यदि। अन्नयरं-कोई एक प्रतिमा ग्रहण की हुई है तब वह अन्य साधुओं की निन्दा न करे।शेष वर्णन। जहा-जैसे। पिंडेसणाए-पिण्डैषणा अध्ययन में सात पिण्डैषणा प्रतिमाओं का वर्णन किया है उसी प्रकार जान लेना चाहिए। मूलार्थ-संयमशील साधु या साध्वी धर्मशाला आदि में गृहस्थ और गृहस्थों के पुत्र आदि सम्बन्धी स्थान के दोषों को छोड़कर इन वक्ष्यमाण सात प्रतिमाओं के द्वारा अवग्रह की याचना करके वहां पर ठहरे।। १-धर्मशाला आदि स्थानों की परिस्थिति को विचार कर यावन्मात्र काल के लिए वहां के स्वामी की आज्ञा हो तावन्मात्र काल वहां ठहरूंगा, यह पहली प्रतिमा है। __२-मैं अन्य भिक्षुओं के लिए उपाश्रय की आज्ञा माँगूगा और उनके लिए याचना किए गए उपाश्रय में ठहरूंगा, यह दूसरी प्रतिमा है। ३-कोई साधु इस प्रकार से अभिग्रह करता है कि मैं अन्य भिक्षुओं के लिए तो अवग्रह की याचना करूंगा, परन्तु उनके याचना किए गए स्थानों में नहीं ठहरूंगा। यह तीसरी प्रतिमा का स्वरूप है। ४-कोई साधु इस प्रकार से अभिग्रह करता है- मैं अन्य भिक्षुओं के लिए अवग्रह की याचना नहीं करूंगा, परन्तु उनके याचना किए हुए स्थानों में ठहरूंगा। यह चौथी प्रतिमा है। ५-कोई साधु यह अभिग्रह धारण करता है कि मैं केवल अपने लिए ही अवग्रह की याचना करूंगा, किन्तु अन्य दो, तीन, चार और पांच साधुओं के लिए याचना नहीं करूंगा। यह पांचवीं प्रतिमा है। ६-कोई साधु यह प्रतिज्ञा करता है कि मैं जिस स्थान की याचना करूंगा उस स्थान पर यदि तृण विशेष- संस्तारक आदि मिल जाएंगे तो उन पर आसन करूंगा, अन्यथा उक्कुटुक आसन आदि के द्वारा रात्रि व्यतीत करूंगा, यह छठी प्रतिमा है। ७-जिस स्थान की आज्ञा ली हो यदि उसी स्थान पर पृथ्वी शिला, काष्ठ शिला तथा पलाल आदि बिछा हुआ हो तब वहां आसन करूंगा, अन्यथा उत्कुटुक आदि आसन द्वारा रात्रि व्यतीत करूंगा, यह सातवीं प्रतिमा है। इन सात प्रतिमाओं में से यदि कोई भी प्रतिमा साधु स्वीकार करे परन्तु वह अन्य साधुओं की निन्दा न करे। अभिमान एवं गर्व को छोड़कर अन्य साधुओं को समभाव से देखे। शेष वर्णन पिंडैषणा अध्ययनवत् जानना चाहिए। हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में अवग्रह से सम्बद्ध सात प्रतिमाओं का वर्णन किया गया है।
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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