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________________ सप्तम अध्ययन-अवग्रह प्रतिमा प्रथम उद्देशक छठे अध्ययन में पात्रैषणा का वर्णन किया गया था, परन्तु, साधु पात्र आदि सभी उपकरण किसी गृहस्थ की आज्ञा से ही ग्रहण करता है। क्योंकि उसने पूर्णतया चोरी का त्याग कर रखा है। अतः प्रस्तुत अध्ययन में अवग्रह का वर्णन किया गया है। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से अवग्रह चार प्रकार का होता है और सामान्य रूप से पांच प्रकार का अवग्रह माना गया है- १ देवेन्द्र अवग्रह, २ राज अवग्रह, ३ गृहपति अवग्रह, ४ शय्यातर अवग्रह और ५ साधर्मिक अवग्रह । उक्त अवग्रहों का वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम्-समणे भविस्सामि अणगारे अकिंचणे अपुत्ते अपसू परदत्तभोई पावं कम्मं नो करिस्सामित्ति समुट्ठाए सव्वं भंते ! अदिनादाणं पच्चक्खामि, से अणुपविसित्ता गामं वा जाव रायहाणिं वा नेव सयं अदिन्नं गिण्हिज्जा नेवऽन्नेहिं अदिन्नं गिहाविज्जा अदिनं गिण्हंतेवि अन्ने न समणुजाणिज्जा, जेहिवि सद्धिं संपव्वइए तेसिपि जाइं छत्तगं वा जाव चम्मछेयणगं वा तेसिं पुव्वामेव उग्गहं अणणुन्नविय अपडिलेहिय २ अपमजिय २ नो उग्गिण्हिज्जा वा, परिगिण्हिज्जा वा, तेसिं पुव्वामेव उग्गहं जाइजा अणुन्नविय पडिलेहिय पमजिय तओ सं. उग्गिण्हिज्जा वा प० ॥१५५॥ छाया- श्रमणो भविष्यामि अनगारः अकिंचनः अपुत्रः अपशुः परदत्त- भोजी पापं कर्म न करिष्यामि, इति समुत्थाय सर्वं भदन्त! अदत्तादानं प्रत्याख्यामि, स अनुप्रविश्य ग्रामं वा यावद् राजधानी वा नैव स्वयमदत्तं गृह्णीयात्, नैवान्यैः अदत्तं ग्राहयेत्, अदत्तं गृह्णतोऽप्यन्यान् न समनुजानीयात्, यैरपि (साधुभिः) सा संप्रवजितः तेषामपि यानि छत्रक वा यावत् चर्मच्छेदनकं वा तेषां पूर्वमेव अवग्रहमननुज्ञाप्याप्रतिलिख्य २ अप्रमृज्य २ नावगृह्णीयाद् वा प्रतिगृह्णीयाद् वा तेषां पूर्वमेव अवग्रहं याचेतानुज्ञाप्य प्रतिलिख्य प्रमृज्य ततः संयतमेवावगृह्णीयात् प्रतिगृह्णीयाद्वा। पदार्थ-समणे भविस्सामि-मैं श्रमण-तपस्वी साधु बनूंगा। किस प्रकार का ? अणगारे-अनगार
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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