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षष्ठ अध्ययन, उद्देशक २ उदके आहरेत् प्रक्षिपेत्। स पतद्ग्रहमादाय पानं परिष्ठापयेत्, सस्निग्धायां वा भूमौ नियमेत्प्रक्षिपेत्॥स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा उदका वा सस्निग्धं वा पतद्ग्रहं नो आमृज्येत् २ अथ पुनः एवं जानीयात् विगतोदकं मे पतद्ग्रहं (पात्रं) छिन्नस्नेहं तथाप्रकारं पतद्ग्रहं ततः संयतमेव आमृज्येत वा यावत् परितापयेत् वा॥ स भिक्षुर्वा गृहपतिकुलं प्रवेष्टुकामः पतद्ग्रहमादाय गृहपतिकुलं पिण्डपातप्रतिज्ञया प्रविशेद्वा निष्क्रामेवा, एवं बहिःविचारभूमिं वा विहारभूमि वा ग्रामानुग्रामं दूयेत-गच्छेत्। तीव्रदेशीया यथा द्वितीयायां वस्त्रैषणायां, नवरं अत्र पतद्ग्रहे, एवं खलु तस्य भिक्षोः २ सामग्र्यं यत् सर्वार्थैः समितैः सहितः सदा यतेत। इति ब्रवीमि।
पदार्थ-से भि०-वह साधु अथवा साध्वी। जाव समाणे-गृहपति के घर में प्रवेश करते हुए।सियाकदाचित्। से-उस साधु को। परो-गृहस्थ आहट्ट-घर के भीतर से बाहर लाकर। अंतोपडिग्गहगंसि-गृहस्थ के अन्य किसी पात्र में। सीओदगं-सचित्त पानी को। परिभाइत्ता-घट आदि के किसी अन्य बर्तन में डालकर। निहटु-फिर उसे लाकर। दलइज्जा-दे तो। तहप्पगारं-तथाप्रकार के। पडिग्गहगं-पात्र को-जो कि पानी से भरा हुआ है। परहत्थंसि वा-गृहस्थ के हाथ में है। परपायंसि वा-या अन्य पात्र में है तो। अफासुयं-उसे अप्रासुक। जाव-यावत् अनेषणीय जानकर। नो प०-साधु ग्रहण न करे। य-पुनः। से-वह-पात्र। आहच्चकदाचित्। पडिग्गाहिए सिया-ग्रहण कर लिया हो तो। से-वह साधु । खिप्पामेव-शीघ्र ही। उदगंसि-उस पानी को डालने योग्य भाजन में।साहरिजा-डाल दे।पडिग्गहमायाए-यदि गृहस्थ पानी वापिस लेना न चाहे तो पानी युक्त पात्र को लेकर किसी अन्य एकान्त स्थान में जाकर। पाणं-पानी को। परिलविजा-परठ दे। वाअथवा। ससिणिद्धाए भूमीए-स्निग्ध भूमि पर। नियमिज्जा-परठ दे।से भि०-वह साधु अथवा साध्वी पानी को परठने के बाद। उदउल्लं वा-जिससे पानी के बिन्दु टपक रहे हैं अथवा। ससिणिद्धं वा-जो पानी से गीला है।
स पात्र को। नो आमजिजा-मार्जित न करे: मसले नहीं यावत धप में सखाए नहीं। अह पण एवं जाणिज्जा-और यदि इस प्रकार जाने। मे-मेरा। पडिग्गहए-पात्र। विगओदए-पानी से रहित हो गया है और। छिन्नसिणेहे-गीला भी नहीं है। तह-तथाप्रकार के।पडिग्गह-पात्र को।तओ-तत्पश्चात्।सं-साधु।आमजिज वा-प्रमार्जित करे। जाव-यावत्। पयाविज वा-धूप में सुखाए।
. से भि०-वह साधु या साध्वी। गाहा.-गृहपति के घर में। पविसिउकामे-प्रवेश करने की इच्छा करता हुआ।पडिग्गहमायाए-पात्र को लेकर।गाहा०-गृहपति के घर में। पिंड-आहार प्राप्ति के लिए।पविसिज वाप्रवेश करे अथवा। निः-निकले। एवं बहिया-इसी प्रकार बाहर। वियारभूमिं वा-स्थंडिल में जाना हो तो पात्र लेकर जाए और। विहारभूमिं वा-स्वाध्याय भूमि में जाना हो तो पात्र लेकर जाए तथा। गामा० दूइजिजाग्रामानुग्राम विहार करना हो तब भी पात्र लेकर विहार करे। तिव्वदेसियाए-यदि थोड़ी-बहुत वर्षा बरस रही हो तो। जहा-जैसे। बिइयाए-द्वितीय। वत्थेसणाए-वस्वैषणा के विषय में वर्णन किया है, शेष वर्णन उसी तरह समझ लेना चाहिए। नवरं-इतना विशेष है। इत्थ-यहां पर। पडिग्गहे-पात्र का अधिकार जानना। खलु-निश्चय ही। एवं-इस प्रकार। तस्स भिक्खुस्स वा० २-उस साधु या साध्वी का। सामग्गियं-समग्र-सम्पूर्ण आचार है। जं सव्वठेहि-जो सर्व अर्थों से युक्त। समिएहि-समितियों के। सहिए-सहित। सया-सदा। जएजासि-इसके पालन में यल करे।त्तिबेमि-इस प्रकार मैं कहता हूं।