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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध अधारणीयं' इन चारों पदों के १६ भंग बनते हैं, उनमें १५ भंग अशुद्ध माने गए हैं और अन्तिम भंग शुद्ध माना गया है। कुछ प्रतियों मे 'रोइज्जतं' के स्थान पर 'देइज्जतं' और कुछ प्रतियों में 'वइज्जतं' पाठ भी उपलब्ध होता है।
___वस्त्र प्रक्षालन करने के बाद उसे धूप में रखने के सम्बन्ध में उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते
१ स्थापनायंत्रम्
अलं | स्थिरं | ध्रुवं | धारणीयं
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| ०
१०
११ ।
१४