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________________ चतुर्थ अध्ययन-भाषैषणा द्वितीय उद्देशक साधु को कैसी भाषा बोलनी चाहिए और किस तरह की भाषा नहीं बोलनी चाहिए इसका प्रथम उद्देशक में विचार किया गया है। अब प्रस्तुत उद्देशक में इसी विषय पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम्-से भिक्खू वा २ जहा वेगइयाई रूवाइं पासिज्जा-तहावि ताई नो एवं वइज्जा-गंडी गंडीति वा कुट्ठी कुट्ठीति वा जाव महुमेहुणीति वा हत्थच्छिन्नं वा हत्थच्छिन्नेत्ति वा एवं पायच्छिन्नेत्ति वा नक्कछिण्णेइ वा कण्णछिन्नेइ वा उट्ठछिन्नेति वा, जेयावन्ने तहप्पगारा एयप्पगाराहिं भासाहिं बुइया २ कुप्पंति माणवा ते यावि तहप्पगाराहिं भासाहिं अभिकंख नो भासिज्जा।से भिक्खू वा. जहा वेगइयाई रूवाइं पासिजा तहावि ताई एवं वइज्जा, तंजहा-ओयंसी ओयंसित्ति वा तेयंसी तेयसीति वा जसंसी जसंसीइ वा वच्चंसी वच्चंसीइ वा अभिरूयंसी २ पडिरूवंसी २ पासाइयं २ दरिसणिजंदरिसणीयत्ति वा, जेयावन्ने तहप्पगारा तहप्पगाराहिं भासाहिं बुइया २ नो कुप्पंति माणवा ते यावि तहप्पगारा एयप्पगाराहिं भासाहिं अभिकंख भासिज्जा। से भिक्खू वा. जहा वेगइयाई रूवाइं पासिज्जा, तंजहा वप्पाणि वा जाव गिहाणि वा, तहावि ताइं नो एवं वइज्जा, तंजहा-सुक्कडे इ वा सुठुकडे इ वा साहुकडे इ वा कल्लाणे इ वा करणिजे इ वा, एयप्पगारं भासं सावजं जाव नो भासिज्जा। से भिक्खू वा. जहा वेगइयाई रूवाइं पासिज्जा, तंजहा-वप्पाणि वा जाव गिहाणि वा, तहावि ताई एवं वइज्जा, तंजहा-आरम्भकडे इ वा सावज्जकडे इ वा पयत्तकडे इ वा पासाइयं पासाइए वा दरिसणीयं दरिसणीयंति वा अभिरूवं अभिरूवंति वा पडिरूवं पडिरूवंति वा एयप्पगारं भासं असावजं जाव भासिज्जा॥१३६॥ छाया- स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा यथा वैककानि रूपाणि कानिचिद् रूपाणि पश्येत्
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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