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तृतीय अध्ययन, उद्देशक २
२६१ इस विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्- से भिक्खू वा० गामा० दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिवहिया उवागच्छिज्जा, ते णं पाडिवहिया एवं वइजा-आउ० समणा ! केवइए एस गामे जाव रायहाणी वा ? केवइया इत्थ आसा हत्थी गामपिंडोलगा मणुस्सा परिवसंति?से बहुभत्ते बहुउदए बहुजणे बहुजवसे से अप्पभत्ते अप्पुदए अप्पजणे अप्पजवसे ? एयप्पगाराणि पसिणाणि पुच्छिज्जा, एयप्प० पुट्ठो वा अपुट्ठो वा नो वागरिजा, एवं खलु जं सव्वढेहिं॥१२६॥
छाया-स भिक्षुर्वा ग्रामानुग्रामं गच्छन् अन्तराले तस्य प्रातिपथिकाः उपागच्छेयुः, ते प्रतिपथिकाः एवं वदेयुः आयुष्मन् श्रमण ! कियान् एष ग्रामः ? वा यावत् राजधानी वा कियन्तः अत्र अश्वाः हस्तिनः ग्रामपिण्डावलका मनुष्याः परिवसन्ति ? स बहुभक्तः बहूदकः बहुजनो स (अथ) अल्पभक्तः अल्पोदकः अल्पजनः अल्पयवसः ? एतत्प्रकारान् प्रश्नान् पृच्छेत् एतत् प्रकारान् प्रश्नान् पृष्टो वा अपृष्टो वा नो व्याकुर्यात्। एवं खलु यत् सर्वार्थैः । इति ब्रवीमि।
.. पदार्थ-से भिक्खूवा-वह साधु या साध्वी।गामाणुगाम-ग्रामानुग्राम।दूइज्जमाणे-विहार करता हुआ।अंतरा से-उसके मार्ग में। पाडिवहिया-सम्मुख-सामने आने वाले पथिक मुसाफिर-यदि। उवागच्छिज्जाआ जावें और। णं-वाक्यालंकार में। ते-वे पथिक। एवं वइज्जा-इस प्रकार कहें। आउ० समणा-आयुष्मन् श्रमण !। केवइया-कितने प्रमाण में। एस-यह। गामे वा-ग्राम है। जाव-यावत्। रायहाणी वा-राजधानी है? और।केवइया-कितने।इत्थ-यहां पर।आसा-अश्व-घोड़े।हत्थी-हाथी हैं; तथा यहां पर कितने।गामपिंडोलगाग्राम याचक ग्राम में भिक्षावृत्ति से निर्वाह करने वाले भिखारी लोग हैं, तथा यहां पर कितने। मणुस्सा-मनुष्य। परिवसंति-निवास करते हैं तथा। से-इस ग्राम आदि में क्या। बहुभत्ते-आहारादि खाद्य पदार्थ प्रचुर हैं ? बहुउदए-यहां पानी पर्याप्त है ? बहुजणे-बहुत लोग बसते हैं। बहुजवसे-बहुत धान्यादि हैं ? से-अथवा। अप्पभत्ते-आहार।अप्पुदए-पानी आदि थोड़ा है। अप्पजणे-लोग भी कम हैं और।अप्पजवसे-अल्प धान्यादि हैं ? एयप्पगाराणि-इस प्रकार के।पसिणाणि-प्रश्नों को यदि। पुच्छिज्जा-पूछे तब साधु। एयप्प०-इस प्रकार के प्रश्नों का। पुट्ठो वा-पूछने पर या। अपुट्ठो वा-न पूछने पर भी। नो वागरिजा-उत्तर न दे। एवं-इस प्रकार। खलु-निश्चय ही। तस्स-उस। भिक्खुस्स-साधु या साध्वी का। सामग्गियं-समग्र-सम्पूर्ण आचार है। जं-जो। सव्वढेहि-ज्ञान, दर्शन और चारित्र से तथा। समिए-समिति में। सहिए-युक्त हुआ। सया-सदा। जएज्जासि-यत्न करे।त्तिबेमि-इस प्रकार मे कहता हूं।
मूलार्थ- साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ उसके मार्ग में यदि कोई सामने से और पथिक आ जाए और साधु से पूछे कि- आयुष्मन् श्रमण ! यह ग्राम यावत् राजधानी कैसी है ? यहां पर कितने घोड़े, हाथी और ग्राम याचक हैं, तथा कितने मनुष्य निवास करते हैं ? क्या