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तृतीय अध्ययन, उद्देशक १
२४३ वइ-कहे कि।आउर्स-हे आयुष्मन् श्रमण ! यदि। तुम-तू। नावं-नौका को। उक्कसित्तए वा-खींचने के लिए। नो संचाएसि-समर्थ नहीं है तो फिर। रज्जुयाए वा-रस्सी को। गहाय-पकड़कर।आकसित्तए वा-यह रस्सी। आहर-मुझे दे दे। एयं-इस। नावाए-नौका को। रज्जूए-रजू से। सयं-मैं स्वयं अपने आप। च-फिर। एवंनिश्चय ही। णं-वाक्यालंकार में है। वयं-हम लोग। नावं-नौका को। उक्कसिस्सामो-दृढ़ कर लेंगे। जावयावत्। रज्जूए-रज्जू को।गहाय-ग्रहण करके।आकसिस्सामो-रजू बान्ध कर विशेष रूप से दृढ़ करेंगे।से-वह भिक्षु। तं-उस नाविक के। प०-इस वचन को भी। नो परिजाणिजा-स्वीकार न करे किन्तु। तुसि-मौन भाव में रहे अर्थात् चुप रहे।
से-वह गृहस्थाणं-वाक्यालंकार में है। प०-पर-अन्य नाव में बैठा हुआ नाविक साधु के प्रति कहता है कि। आउसं-हे आयुष्मन् श्रमण ! ता-पहले। तुमं-तू। एयं-इस। नावं-नाव को। आलित्तेण वा-नौका के चलाने वाले चप्पू से या। पीढएण वा-पीठ से या। वैसेण वा-बांस से अथवा। वलएण वा-वल्ली से-नौका के उपकरण विशेष से या।अवलुएण वा-नौका को चलाने का बांस विशेष, उससे। वाहेहि-नौका को आगे चला। से-वह भिक्षु।तं-उस नाविक के।प०-इस वचन को भी। नो परिजाणिज्जा-स्वीकार न करे किन्तु। तुसि-मौन भाव से चुप रहे। णं-वाक्यालंकार में है।
से-वह । परो०-अन्य नाव में बैठा हुआ नाविक, नावागत साधु के प्रति कहने लगा कि हे आयुष्मन् श्रमण ! ता-पहले। तुमं-तू। एयं-इस। नावाएं-नौका में। उदयं-भरे हुए पानी को। हत्थेण वा-हाथ से। पाएण वा-अथवा पैर से या। मत्तेण वा-पात्र से। पडिग्गहेण वा-या बर्तन से या। नावाउस्सिंचणेण वानौका में रखे हुए पानी उलीचने के पात्र से। उस्सिंचाहि-इस पानी को नौका से बाहर निकाल।नो से तं-वह साधु उस नाविक के उन वचनों को भी स्वीकार न करे किन्तु मौन धारण करके बैठा रहे। णं-वाक्यालंकार में है।
से-वह । परो-अन्य नावा में बैठा हुआ नावागत साधु के प्रति कहने लगा। समणा !-हे आयुष्मन् श्रमण ! तुम-तू। एयं-इस। नावाए-नौका के। उत्तिंग-छिद्र को। हत्थेण वा-हाथ से। पाएण वा-पैर से। बाहुणा वा-बाहु-भुजा से। उरुणा वा-जंघादि से। उदरेण वा-पेट से। सीसेण वा-सिर से। कारण वाशरीर से। उस्सिंचणेण वा-उत्सिंचन-नौका से जल निकालने के पात्र विशेष से या। चेलेण वा-वस्त्र से। मट्टिया वा-मिट्टी से या। कुसपत्तेण वा-कुशापत्र से। कुविंदएण वा-कुविन्द नामक तृण विशेष से। पिहेहि-बन्द कर दे। नो से तं-वह साधु उस नाविक के इस वचन को भी स्वीकार न करे किन्तु मौनावलम्बन करके बैठा रहे।
से भिक्खू वा-वह साधु अथवा साध्वी। नावाए-नौका के। उत्तिंगेण-छिद्र के द्वारा। उदयं-पानी को।आसवमाणं-आता हुआ। पेहाए-देखकर। उवरुवरिं-बहुत से जल से।नावं-नौका को।कजलावेमाणिंभरी हुई। पेहाए-देखकर। परं-अन्य गृहस्थ के। उवसंकमित्तु-पास जाकर। नो एयं बूया-इस प्रकार न कहे कि।आउसंतो गाहावइ-हे आयुष्मन् गृहपते ! एयं ते-तुम्हारी इस। नावाए-नौका में। उत्तिंगेण-छिद्र के द्वारा। उदयं-जल। आसवइ-आ रहा है। उवरुवरि-ऊपर २ बहुत जल से। नावा वा-नौका। कजलावेइ-भर रही है। एयप्पगारं-इस प्रकार के। मणं वा वायं वा-मन अथवा वचन को। पुरओ कटु-आगे करके अर्थात्