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तृतीय अध्ययन, उद्देशक १ प्रकार के प्रदेशों में विहार करने का संकल्प भी न करे।
हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि साधु को ऐसे प्रान्तों में विचरना चाहिए जहां आर्य एवं धर्म-निष्ठ भद्र लोग रहते हों। परन्तु, सीमान्त पर जो अनार्य देश हैं, जहां पर चोर-डाकू, भील, अनार्य एवं म्लेच्छ लोग रहते हों उन देशों में नहीं जाना चाहिए। क्योंकि, ये लोग दुर्लभ बोधि होते हैं अर्थात् धर्म एवं आर्यत्व को जल्दी ग्रहण नहीं कर पाते। ये कुसमय में जागृत रहते हैं अर्थात् जिस समय सभ्य एवं सज्जन लोग शयन करते हैं, उस समय उनका धन लूटने के लिए ये लोग जागते रहते हैं और कुसमय में ही भोजन करते हैं तथा उन्हे भक्ष्य-अभक्ष्य का भी विवेक नहीं होता है। यदि ऐसे अनार्य व्यक्तियों के निवास स्थानों की ओर साधु चला जाए तो वे उसे चोर, गुप्तचर आदि समझकर कष्ट देंगे, मारेंगे-पीटेंगे तथा उसके उपकरण एवं वस्त्र आदि छीन लेंगे या तोड़-फोड़कर दूर फैंक देंगे। इसलिए मुनि को ऐसे प्रदेशों की ओर विहार नहीं करना चाहिए।
इससे यह स्पष्ट होता है कि वर्तमान युग की तरह उस समय भी एक-दूसरे देश की सीमाओं पर तथा अपने राज्य की आन्तरिक स्थिति का तथा चोर-डाकुओं के गुप्त स्थानों का पता लगाने के लिए गुप्तचरों की नियुक्ति की जाती थी।
प्रस्तुत सूत्र में ऐसे स्थानों पर जाने का निषेध साधु के लिए ही किया गया है, न कि सम्यग्दृष्टि एवं श्रावक के लिए। सम्यग्दृष्टि एवं श्रावक अनुकूल साधनों के प्राप्त होने पर वहां जाकर उन्हें संस्कारित एवं सभ्य बनाने का प्रयत्न कर सकते हैं।
इस विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्- से भिक्खू दूइज्जमाणे अंतरा से अरायाणि वा गणरायाणि वा जुवरायाणि वा दोरज्जाणि वा वेरज्जाणि वा विरुद्धरजाणि सह लाढे विहाराए संथ. जण नो विहारवडियाए०, केवली बुया आयाणमेयं, ते णं बाला तं चेव जाव गमणाए तओ सं॰ गा० दू०॥११६॥
छाया- स भिक्षुर्वा गच्छन् अन्तराले स अराजानि वा गणराजानि वा युवराजानि वा द्विराज्यानि वा वैराज्यानि वा विरुद्धराज्यानि वा सति लाढे विहाराय संस्तरमाणेषु जनपदेषु नो विहारप्रत्ययाय केवली ब्रूयात् आदानमेतत् ते बाला तच्चैव यावत् गमनाय ततः संयतः ग्रामानुग्रामं गच्छेत्।
पदार्थ-से भिक्खू वा-साधु या साध्वी। दूइज्जमाणे-ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ।अन्तरा सेउस मार्ग के मध्य में। अरायाणि वा-जिस देश में राजा की मृत्यु हो गई हो, और नवीन राजा को अभी तक सिंहासनारूढ़ नहीं किया गया हो उस अराजक देश में। गणरायाणि वा-प्रजा की सर्व सम्मति या बहु सम्मति से कुछ समय के लिए किसी व्यक्ति को राज्य सिंहासन पर बैठाया गया हो। जुवरायाणि वा-अथवा राजकुमार