________________
अंग है और इसे प्रथम श्रुतस्कन्ध से किसी भी तरह अलग नहीं किया जा सकता है।
द्वितीय श्रुतस्कन्ध का कर्ता कौन स्थविर है ?
हम विस्तार से बता चुके हैं कि द्वितीय श्रुतस्कन्ध गणधर कृत है। यदि कुछ लोगों के विचारानुसार यह स्थविर कृत है, तो यह प्रश्न उठे बिना नहीं रहेगा कि इसका कर्ता कौन स्थविर है ? अतः इसे स्थविर कृत मानने वाले वरिष्ठ विद्वानों को यह स्पष्ट करना चाहिए कि उस स्थविर का नाम क्या था? उसने किस शताब्दी में इसकी रचना की? बिना प्रमाण के कोई भी बात मान्य नहीं की जा सकती। क्योंकि, कई आगमों का संकलन गणधरों से भिन्न स्थविरों ने किया है, वहां उनके नामों का उल्लेख मिलता है।
जैसे दशवैकालिक सूत्र गणधर कृत नहीं है। इसमें प्रायः साध्वाचार का वर्णन है। वस्तुतः देखा जाए तो यह आचाराङ्ग का एक छोटा-सा रूप है, संक्षिप्त संस्करण है। इसके संकलन कर्ता श्री संभवाचार्य थे। भगवान महावीर के निर्वाण पधारने के ८५ वर्ष बाद वे आचार्य पद पर आसीन हुए। उन्होंने अपने नवदीक्षित पुत्र को साध्वाचार का ज्ञान कराने के लिए इस आगम का संकलन किया था। यह आगम अलौकिक विलक्षण होते हुए भी भाषा की दृष्टि से सरल एवं सुगम है और हम देखेंगे कि इसका निर्माण करते समय विशेष रूप से आचाराङ्ग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध का ही सहारा लिया है। अतः हम कह सकते हैं कि द्वितीय श्रुतस्कन्ध ही दशवैकालिक की नींव है।
आचाराङ्ग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन का नाम 'पिंडैषणा' अध्ययन है। इस अध्ययन को सम्मुख रखकर ही दशवैकालिक के पांचवें अध्ययन का निर्माण किया गया है, उसका नाम भी 'पिण्डैषणा' है। दोनों का विषय भी एक है और दोनों के नाम भी एक ही हैं। दशवैकालिक का चौथा 'छज्जीवणीकाय' अध्ययन आचाराङ्ग के 'भावना' अध्ययन के आधार से रचा गया है, जो द्वितीय श्रुतस्कन्ध का १५वां अध्ययन है। दशवैकालिक का 'सुवक्क सुद्धी' नामक सातवां अध्ययन द्वितीय श्रुतस्कन्ध के भाषा अध्ययन का पद्य में अनुवाद है। इन प्रमाणों से यह भी स्पष्ट होता है कि दशवैकालिक आचाराङ्ग का सुन्दर पद्यानुवाद है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि आचाराङ्ग का द्वितीय श्रुतस्कन्ध संभवाचार्य से पहले विद्यमान था। इससे यह भी ध्वनित होता है कि यह गणधर कृत है। क्योंकि, यदि यह साधारण स्थविर कृत होता तो सम्भवाचार्य इसके आधार पर दंशवैकालिक की रचना नहीं करते और जैसे दशवैकालिक सूत्र के साथ संभवाचार्य का नाम जुड़ा हुआ है वैसे द्वितीय श्रुतस्कन्ध के कर्ता का नाम भी उसके साथ सम्बद्ध होता। परन्तु, द्वितीय श्रुतस्कन्ध के कर्ता के नाम का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है
और आज तक न किसी विद्वान ने इसका उल्लेख किया है। अतः इस से यह स्पष्टतः सिद्ध होता है कि द्वितीय श्रुतस्कन्ध दशवैकालिक से अधिक प्राचीन एवं गणधर कृत है।
द्वितीय श्रुतस्कन्ध की प्रामाणिकता का एक और प्रमाण
यह हम देख चुके हैं कि दशवैकालिक सूत्र का निर्माण द्वितीय श्रुतस्कन्ध के आधार पर हुआ है। इसके अतिरिक्त अन्य आगमों में अनेक स्थानों पर आचाराङ्ग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध की झलक मिलती है। हम यों भी कह सकते हैं कि आचाराङ्ग सूत्र बत्तीस आगमों में समाहित-सा हो गया है। स्थानाङ्ग सूत्र में यह वर्णन आता है कि 'चार श्य्या प्रतिमा, चार वस्त्र प्रतिमा, चार पात्र प्रतिमा और चार स्थान प्रतिमा कही
(xvi)