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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध तरह साधु किसी भी एक प्रकार के तृण का नाम निश्चित करके उसकी याचना करता है और यदि कोई गृहस्थ उसे उस तरह के तृण का आमंत्रण करे तब भी वह उसे ग्रहण कर सकता है। यह प्रथम प्रतिमा
अब दूसरी एवं तीसरी प्रतिमा का वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्- अहावरा दुच्चा पडिमा-से भिक्खू वा० पेहाए संथारगंजाइज्जा, तंजहा-गाहावई वा कम्मकरिं वा से पुवामेव आलोइजा-आउ० ? भइ ? दाहिसि मे? जाव-पडिगाहिज्जा, दुच्चा पडिमा।
अहावरा तच्चा पडिमा-से भिक्खूवा-जस्सुवस्सए संवसिज्जा जे तत्थ अहासमन्नागए, तंजहा-इक्कडे इवा जाव पलाले इ वा तस्स लाभे संवसिज्जा, तस्सालाभे उक्कुडुए वा नेसज्जिए वा विहरिज्जा, तच्चा पडिमा॥१०१॥
छाया- अथापरा द्वितीया प्रतिमा, स भिक्षुर्वा प्रेक्ष्य सस्तारकं याचेत् तद्यथागृहपतिं वा कर्मकरी वा स पूर्वमेव आलोचयेद् आयुष्मन्! भगिनि ! दास्यसि मे ? यावत् प्रतिगृह्णीयाद्, द्वितीया प्रतिमा।
अथापरा तृतीया प्रतिमा स भिक्षुर्वा यस्योपाश्रये संवसेद् ये तत्र यथा-समन्वागताः तद्यथा-इक्कड इति वा यावत् पलाल इति वा तस्य लाभे संवसेत् तस्यालाभे उत्कटुको वा निषण्णो वा विहरेत्, तृतीया प्रतिमा।
पदार्थ- अहावरा-अथ अन्य। दुच्चा पडिमा-दूसरी प्रतिमा के सम्बन्ध में कहते हैं। से भिक्खू वा०-अभिग्रह करने वाला साधु या साध्वी। संथारगं-संस्तारक को। पेहाए-देख कर। जाइजा-याचना करे। तंजहा-जैसे कि।गाहावई वा-गृहपति को अथवा। कम्मकरिं वा-दासी को।से-वह भिक्षु-साधु। पुव्वामेवपहले ही। आलोइजा-देखे और उनके प्रति कहे।आउ.-हे आयुष्मन् ! गृहपते ! अथवा। भइ-हे भगिनि ! मेमुझे।दाहिसि-यह संस्तारक दोगी? जाव-यावत्।पडिगाहिजा-उसके देने पर उसे ग्रहण करे।दुच्चा-पडिमायह दूसरी प्रतिमा है।
पदार्थ- अहावरा-अथ अन्य। तच्चा पडिमा-तीसरी प्रतिमा के सम्बन्ध में कहते हैं जैसे कि।से भिक्खू वा-वह साधु या साध्वी। जस्सुवस्सए-जिसके उपाश्रय में। संवसिज्जा-निवास करे। जे-जो। तत्थवहां पर अर्थात् उस उपाश्रय में। अहासमन्नागए-यावन्मात्र उस उपाश्रय में संस्तारक हैं-जैसे कि। इक्कडे इ वा-इक्कड़ तृण विशेष। जाव-यावत्। पलाले इवा-पलाल आदि से निर्मित्त संस्तारक हैं। तस्स लाभे-अतः उसके मिलने पर। संवसिज्जा-वह वहां पर निवास करे अर्थात् उसके ऊपर शयनादि क्रिया करे। तस्सालाभेउसके न मिलने पर अर्थात् उपाश्रय में उक्त प्रकार के तृण आदि के संस्तारकों के न मिलने पर। उक्कुडुए वा-वह उत्कुटुक आसन। नेसजिए वा-पद्म आसन आदि के द्वारा। विहरिजा-विचरे अर्थात् रात्रि व्यतीत करे। तच्चा पडिमा-यह तीसरी प्रतिमा है।
सानिया है।