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________________ द्वितीय अध्ययन, उद्देशक ३ २०९ स्थान में नहीं ठहरना चाहिए। क्योंकि इससे साधु के स्वाध्याय, ध्यान एवं चिन्तन-मनन में विघ्न पड़ेगा और उसके मन में भी विकार भावना जागृत हो सकती है। इसलिए साधु को सदा ऐसे स्थानों से बचकर ही रहना चाहिए। प्रस्तुत सूत्र से यह स्पष्ट होता है कि जब मानव मन में विषय-वासना की आग प्रज्वलित होती है तो उस समय वह अपना सारा विवेक भूल जाता है। कभी-कभी तो वह मानवीय सभ्यता को त्याग कर पशुता के स्तर पर भी पहुँच जाता है। उस समय उसे वस्त्रों का त्याग करने में भी हिचक नहीं होती और अश्लील शब्दों पर तो उसका जरा भी प्रतिबन्ध नहीं रहता है। इसलिए साधु-साध्वियों को ऐसे अश्लील वातावरण से सदा दूर रहना चाहिए। इस विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैंमूलम्- से भिक्खूवा से जंपुण उ आइन्नसंलिक्खं नो पन्नस्स०॥९८॥ छाया- स भिक्षुर्वी स यत् पुनः उ० आकीर्णसंलेख्यं नो प्राज्ञस्य। पदार्थ-से-वह। भिक्खू वा-साधु अथवा साध्वी।से जं पुण उ०-फिर वह उपाश्रय के सम्बन्ध में यह जाने कि। आइन्नसंलिक्खं-जो मकान स्त्री-पुरुष आदि के चित्रों से सुसजित है तो। नो पन्नस्स-प्रज्ञावान साधु को उस स्थान पर नहीं ठहरना चाहिए और वहां स्वाध्याय आदि भी नहीं करना चाहिए। मूलार्थ जो उपाश्रय स्त्री-पुरुष आदि के चित्रों से सजित हो रहा है तो उस उपाश्रय में प्रज्ञावान साधु को नहीं ठहरना चाहिए और वहां पर स्वाध्याय अथवा ध्यानादि भी नहीं करना चाहिए। हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि साधु को चित्रों से आकीर्ण उपाश्रय में नहीं ठहरना चाहिए। इसमें चित्र मात्र का उल्लेख किया गया है। यहां स्त्रियों एवं पुरुषों आदि के चित्र का भेद नहीं किया गया है। इससे यह ध्वनित होता है कि केवल चित्र का अवलोकन करने मात्र से ही विकार की जागृति नहीं होती। यदि स्त्री का चित्र देखते ही साधु का मन साधना के बांध को तोड़कर वासना की ओर प्रवहमान होने लगे तो फिर कोई भी साधु संयम में स्थिर नहीं रह सकेगा। क्योंकि, व्याख्यान सुनने एवं दर्शन के लिए आने वाली बहिनों को प्रत्यक्ष रूप में देखकर तथा आहार-पानी के समय भी उन्हें देखकर या उनसे बातें करके तो वह न मालूम कहां जा गिरेगा। अस्तु, संयम का नाश केवल स्त्री के चित्र या शरीर को देखने मात्र से नहीं होता, अपितु विकारी भाव से देखने पर होता है। . इससे प्रश्न पैदा होता है कि फिर सूत्रकार ने चित्रों से युक्त मकान में ठहरने का निषेध क्यों किया? इसका समाधान यह है कि चित्र केवल विकृति के ही साधन नहीं हैं, उसका और रूप में भी प्रभाव पड़ता है। यदि केवल विकार उत्पन्न होने की दृष्टि से ही निषेध किया जाता तो यह उल्लेख अवश्य किया जाता कि साधु को स्त्री के चित्रों से चित्रित उपाश्रय में तथा साध्वी को पुरुषों के चित्र युक्त उपाश्रय में नहीं ठहरना चाहिए। परन्तु, प्रस्तुत सूत्र में तो केवल स्त्री-पुरुष के चित्र ही नहीं, अपितु पशुपक्षी एवं नदी, पर्वत, जंगल आदि के प्राकृतिक चित्रों से युक्त उपाश्रय में भी ठहरने का निषेध किया है।
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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