SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध इस विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम् - से भिक्खू वा० से जं०, इह खलु गाहावई वा० कम्मकरीओ वा अन्नमन्नं अक्कोसंति वा जाव उद्दवंति वा नो पन्नस्स० सेवं नच्चा तहप्पगारे उ० नो ठा० ॥९३॥ २०६ मूलम् - से भिक्खू वा० से जं पुण० इह खलु गाहावई वा कम्मकरीओ. वा अन्नमन्नस्स गायं तिल्लेण वा नव घ० वसाए वा अब्भंगेंति वा मक्खेति वा नो पण्णस्स जाव तहप्प० उक० नो ठा० ॥ ९४ ॥ मूलम् - से भिक्खू वा० से जं पुण० - इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा अन्नमन्नस्स गायं सिणाणेण वा क० लु० चु० प० आघंसंति वा पघंसंति वा उव्वलंति वा उव्वट्टिंति वा नो पन्नस्स० ॥ ९५ ॥ मूलम् - से भिक्खू० से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा, इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरी वा अण्णमण्णस्स गायं सीओदग० उसिणो० उच्छो० पहोयंति वा सिंचंति वा सिणायंति वा नो पन्नस्स जाव नो ठाणं० ॥९६ ॥ छाया -स भिक्षुर्वा० स यत् इह खलु गृहपतिर्वा • कर्मकर्यो वा अन्योऽन्यं आक्रोशन्ति वा यावत् उपद्रवन्ति वा नो प्राज्ञस्य तदेवं ज्ञात्वा तथाप्रकारे उपाश्रये नो स्थानं ॥ ९३ ॥ छाया - स भिक्षु स यत् पुनः इह खलु गृहपतिः वा कर्मकर्यो वा अन्योऽन्यस्य गात्रं तैलेन वा नवनीतेन वा घृतेन वा वसया वा अभ्यंगयन्ति वा प्रक्षयन्ति वा नो प्राज्ञस्य यावत् तथाप्रकारे उपाश्रये नो स्थानं ॥ ९४ ॥ छाया- भिक्षुर्वा स यत् पुनः इह खलु गृहपतिर्वा यावत् कर्मकर्यो वा अन्योऽन्यस्य गात्रं स्नानेन वा कर्केण वा लोध्रेण वा चूर्णेन वा पद्मेन० आघर्षयन्ति वा प्रघर्षयन्ति उवलयन्ति वा उद्वर्तयन्ति वा नो प्राज्ञस्य० ॥ ९५ ॥ छाया - स भिक्षुः स यत् पुनरुपाश्रयं जानीयात्, इह खलु गृहपतिर्वा यावत् कर्मकर्यो वा अन्योन्यस्य गात्रं शीतोदकः उष्णो० उच्छोल० प्रधावयन्ति वा सिंचन्ति वा स्नपयन्ति वा नो प्राज्ञस्य यावत् नो स्थानम्० ॥ ९६ ॥ पदार्थ - से- वह । भिक्खू वा - साधु अथवा साध्वी । से जं०- फिर वह जो उपाश्रय को जाने जैसे कि । इह खलु-निश्चय ही इस संसार में। गाहावई - गृहपति । जाव - यावत् । कम्मकरीओ वा-गृहपति की दासियें। अन्नमन्नं-परस्पर । अक्कोसंति वा आक्रोश करती हैं । जाव - यावत् । उद्दवंति वा - उपद्रव करती हैं अतः वहां। पन्नस्स० - बुद्धिमान साधु को स्वाध्याय आदि नहीं करना चाहिए तथा । सेवं नच्चा - वह साधु इस प्रकार जानकर । तहप्पगारे - तथाप्रकार के । उ०- उपाश्रय में। नो ठा० - कायोत्सर्गादि न करे।
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy