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- श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध कल्पते एवं वक्तुम्-अयं स्तेनः प्रविशति, वा नो वा प्रविशति उपलीयते वा नो वा. आपतति वा नो वा वदति वा नो वा० तेन हृतं, अन्येन हृतं, तस्य हृतं अन्यस्य हृतं अयं स्तेनः अयं उपचारकः अयं हन्ता अयमत्राकार्षीत्, तं तपस्विनं भिक्षु अस्तेनं स्तेनमिति शंकेत, अथ भिक्षणां पूर्वोपदिष्टं यावन्नो स्थानं चेतयेत्।।
पदार्थ-से-वह।भिक्खू-भिक्षु-साधु।उच्चारपासवणेण-मल-मूत्र से।उव्वाहिज्जमाणे-बाधितपीड़ित होने से। राओ वा-रात्रि में। वियाले वा-अथवा विकाल में। गाहावइकुलस्स-गृहपति के घर के। दुवारबाहं-द्वार को। अवंगुणिजा-खोल कर बाहर निकले। य-और फिर। तेणे-चोर। तस्संधिचारी-और छिद्र देखने वाला व्यक्ति।अणुपविसिजा-घर में प्रवेश कर जाए तो। तस्स-उस। भिक्खुस्स-भिक्षु को। एवंइस प्रकार। वइत्तुं-बोलना। नो कप्पइ-नहीं कल्पता, यथा। अयं तेणो-यह चोर। पविसइ वा-प्रवेश कर रहा है। नो वा पविसइ-अथवा नहीं प्रवेश कर रहा है। उवल्लियइ वा-यह यहां छिप रहा है। नो वा०-अथवा नहीं छिप रहा है। आवयइ वा-नीचे कूदता है। नो वा०-अथवा नीचे नहीं कूदता है। वयइ वा-बोलता है। नो वा०अथवा नहीं बोलता है। तेण हडं-उसने चोरी की है। अन्नेण हडं-या अन्य ने चोरी की है। तस्स हडं-इसने उसका माल चुराया है। अन्नस्स हडं-या अन्य का चुराया है। अयं तेणे-यह चोर है। अयं उवचरए-यह उसका उपचारक-संरक्षक है। अयं हन्ता-यह मारने वाला है। अयं इत्थमकासी-इस चोर ने यहां यह काम किया। तंउस। तवस्सिं-तपस्वी। भिक्खं-भिक्षु के प्रति। अतेणं-जो चोर नहीं है। तेणंति-चोरपने की। संकइ-अशंका करता है। अह भिक्खूणं-भिक्षुओं को। पु-तीर्थकरादि ने पहले ही यह उपदेश दिया है कि इस प्रकार के उपाश्रय में साधु। जाव-यावत्। नो ठा-कायोत्सर्गादि न करे।
मूलार्थ रात्रि में अथवा विकाल में साधु ने मल-मूत्रादि की बाधा होने पर गृहस्थ के घर का द्वार खोला और उसी समय कोई चोर या उसका साथी घर में प्रविष्ट हो गया तो उस समय साधु तो मौन रहेगा।वह हल्ला नहीं मचाएगा, कि यह चोर घर में घुसता है, अथवा नहीं घुसता है, छिपता है, अथवा नहीं छिपता है, नीचे कूदता है अथवा नहीं कूदता है, बोलता है अथवा नहीं बोलता है, उसने चुराया है, अथवा अन्य ने चुराया है, उसका धन चुराया है, अथवा अन्य का धन चुराया है, यह चोर है, यह उसका उपचारक है, यह मारने वाला है, और इस चोर ने यहां यह कार्य किया है।
और साधु के कुछ नहीं कहने पर उसे उस तपस्वी साधु पर जो वास्तव में चोर नहीं है, चोर होने का सन्देह हो जाएगा। इसलिए भगवान ने गृहस्थ से युक्त मकान में ठहरने एवं कायोत्सर्ग का निषेध किया है।
हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि साधु रात्रि में या विकाल में मल-मूत्र का त्याग करने के लिए द्वार खोलकर बाहर आए और यदि उसी समय कोई चोर घर में प्रविष्ट होकर छुप जाए और समय पाकर चोरी करके चला जाए। ऐसी स्थिति में साधु उस चोर को चोर नहीं कह सकता है
और न हो-हल्ला ही कर सकता है। वह उस चोर को उपदेश दे सकता है। यदि उसने साधु का उपदेश नहीं माना तो उसके चोरी करके चले जाने के बाद गृहस्थ को मालूम पड़ने पर उस साधु पर चोरी का संदेह हो जाएगा, अतः साधु को ऐसे स्थान में नहीं ठहरना चाहिए।