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द्वितीय अध्ययन, उद्देशक १ हिलती नहीं है या ऊपर से मिट्टी आदि नहीं गिरती है तो ऐसे स्थानों में ठहरने का निषेध नहीं किया गया है। आगम में यत्र-तत्र विषम स्थानों पर ठहरने या ऐसे विषम स्थानों पर रखी हुई वस्तु यदि कोई गृहस्थ उतार कर देवे तो साधु को ग्रहण करने का निषेध किया गया है । इसी तरह जो उपाश्रय दुर्बद्ध (विषम स्थान पर स्थित) है, तो वहां साधु को नहीं ठहरना चाहिए। परन्तु, जिस उपाश्रय में ऊपर पहुंचने का मार्ग सुगम है और उसमें किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं होती हो तो ऐसे स्थान में साधु को ठहरने का निषेध नहीं किया गया है।
___ इसी तरह ऊपर की छत पर जो हाथ-पैर धोने एवं दांत आदि साफ करने का निषेध किया है उसमें भी यही दृष्टि रही हुई है। यदि विषम स्थान नहीं है तो साधु उस पर आ-जा सकता है और दन्त आदि प्रक्षालन करने का जो निषेध किया है वह विभूषा की दृष्टि से किया गया है, न कि कारण विशेष की दृष्टि से। छेद सूत्रों में स्पष्ट कहा गया है कि जो साधु विभूषा, के लिए दान्तों का प्रक्षालन करते हैं उन्हें प्रायश्चित आता है । अस्तु, कारण विशेष से उपाश्रय में स्थित ऊपर के ऐसे स्थानों में जिन पर पहुंचने का मार्ग सुगम है, उन पर दन्त आदि का प्रक्षालन करने का निषेध नहीं है।
उपाश्रय के विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं___ मूलम्- से भिक्खू वा० से जं. सइत्थियं सखुड्डं सपसुभत्तपाणं, तहप्पगारे सागारिए उवस्सए नो ठाणं वा ३ चेइज्जा। आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावइकुलेण सद्धिं संवसमर्माणस्स अलसगे वा विसूइया वा छड्डी वा उव्वाहिज्जा अन्नयरे वा से दुक्खे रोगायंके समुप्पज्जिज्जा, अस्संजए कलुणवडियाए तं भिक्खुस्स गायं तिल्लेण वा घएण वा नवणीयेण वा वसाए वा अब्भंगिज्ज वा मक्खिज वा, सिणाणेण वा कक्केण वा लुद्धण वा वण्णेण वा चुण्णेण वा पउमेण वा आघंसिज्ज वा पघंसिज वा उव्वलिज वा उव्वट्टिज वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलिज्ज वा पक्खालिज वा सिणाविज्ज वा सिंचिज वा, दारुणा वा दारुपरिणामं कटु अगणिकायं उजालिज वा पज्जालिज वा उज्जालित्ता २ कायं आयाविज्जा वा प०, अह भिक्खूणं पुव्वोवइट्ठा• जं तहप्पगारे सागारिए उवस्सए नो ठाणं वा ३ चेइज्जा॥६७॥
छाया- स भिक्षुर्वा स यत् सस्त्रियं सक्षुद्रं सपशुभक्तपानं तथाप्रकारके सागारिके उपाश्रये नो स्थानं वा ३ चेतयेत्।आदानमेतत् भिक्षोः गृहपतिकुलेन सार्द्ध संवसतः अलसकः
१ दशवकालिक सूत्र, ५, १, ६७-६८। २ निशीथ सूत्र, उद्देशक १४, सूत्र ३८, ३९ । ३ जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दंते सीओदगवियडेण वा जाव पधोवंतं वा साइज्जइ।
- निशीथ सूत्र, उ०१५, सूत्र १४१