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________________ द्वितीय अध्ययन शय्यैषणा प्रथम उद्देशक आध्यात्मिक चिन्तन के लिए शरीर प्रमुख साधन है और शरीर की स्वस्थता के लिए आहार ग्रहण करना पड़ता है। इसलिए प्रथम उद्देशक में यह बताया गया है कि साधु को आहार कैसा और किस तरह से ग्रहण करना चाहिए। आहार ग्रहण करने के पश्चात् यह प्रश्न पैदा होता है कि आहार किस स्थान में किया जाए और कहां ठहरा जाए तथा विहार कहां किया जाए ? उक्त प्रश्न का समाधान प्रस्तुत अध्ययन में किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन का नाम है -शय्या-एषणा। शय्या चार प्रकार की बताई गई है- १-द्रव्य शय्या, २-क्षेत्र शय्या, ३-काल शय्या और ४-भाव शय्या। इसमें द्रव्य शय्या- १-सचित्त, २-अचित्त और ३-मिश्र के भेद से तीन तरह की बताई गई हैं। सजीव पृथ्वी आदि को सचित्त शय्या, अचित्त [निर्जीव] पृथ्वी आदि को अचित्त शय्या और अर्द्धपरिणत पृथ्वी आदि- जो अभी तक पूर्णतया अचित्त नहीं हुई है, को मिश्र शय्या कहा गया है। ग्राम, शहर आदि स्थान विशेष में की जाने वाली शय्या को क्षेत्र-शय्या और ऋतुबद्ध काल में की जाने वाली शय्या को काल-शय्या कहते हैं। भावशय्या के दो भेद हैं- १-काय विषयक भाव शय्या और २-भाव विषयक भाव शय्या। गर्भ में स्थित जीवों की शय्या को काय विषयक भवाशय्या कहते हैं। क्योंकि, गर्भस्थ जीवों की स्थिति माता की दशा (हालतं) के अनुरूप बताई गई है। और जो जीव जिस समय औदयिक आदि जिस भाव में परिणमन करते हैं, उस समय उनकी वही भावविषयक भावशय्या कहलाती है। यथा- शयनं शय्या' इस भाव-प्रधान व्युत्पत्ति के अनुरुप भावशय्या का वर्णन किया गया है। इस तरह प्रस्तुत उद्देशक में शय्या के गुण-दोषों का वर्णन किया गया है और आधाकर्म आदि दोषों से युक्त शय्या का त्याग करके निर्दोष शय्या को स्वीकार करने का आदेश देते हुए सूत्रकार कहते मूलम्- से भिक्खू वा अभिकंखिजा, उवस्मयं एसित्तए अणुपविसित्ता गामं वा जाव रायहाणिं वा , से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा सअंडं जाव ससंताणयं तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा सिजं वा निसीहियं वा चेइज्जा॥ से भिक्खूवा० से जंपुण उवस्सयं जाणिज्जा अप्पंडं जाव अप्पसंताणयं, तहप्पगारे उवस्सए पडिलेहित्ता, पमजित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा ३ चेइज्जा॥
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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