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समर्थन होता है, यथा
शरमांसास्थिमज्जा न पृथक् दृश्यन्ते ।
- सुश्रुत संहिता अध्याय ३, श्लोक ३२, पृ० ६४२ ।
अर्थ- पके आम्र फल में केशर, अस्थि, मांस अस्थि मज्जा प्रत्यक्ष रूप में दीखते हैं । परन्तु, कच्चे आम में ये अंग सूक्ष्म अवस्था में होने के कारण भिन्न- भिन्न नहीं दीखते, उन सूक्ष्म केशरादि को सुपक्व आम्र ही व्यक्त रूप देता है।
देख लें, यथा
माता
मार्जारी
कुक्कुटी तापस, मार्जार
कुक्कुर
श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध
तथा - वैद्यक के सुप्रसिद्ध सुश्रुतसंहिता तथा चरक संहिता से भी हमारे उक्त कथन का
प्रस्तुत पाठ में फलों में केशर, गुद्दे, गुठली आदि के लिए मांस, अस्थि एवं मज्जा शब्द का प्रयोग किया गया है।
शठ, कुटिल पिशुन
आम्रफले परिपक्वे
कुक्कुट
केश
तपस्विनी
मेघ वारिद
दैत्या
बधू अङ्गना, प्रिया
राजपुत्री, द्विजा
कुक्कुर, शुक, मयुर
तथा चरक संहिता में महर्षि चरक मिश्री का नाम 'मत्स्यंडिका' लिखते हैं यथाततो मत्स्यंडिका खंड शर्करा विमला परम् ।
यथा यथैषां वैमल्यं भवेच्छैत्य तथा तथा ॥
जटायु, कौशिका, धूर्त
गौरी
चरक संहिता पृष्ठ २९५
इसके अतिरिक्त वैद्यक के सुप्रसिद्ध मदनपाल निघण्टुं के भी कुछ प्रमाणों को पाठक
घीकुआर
जवादि वनस्पति
शेमल
तिंगोटी
श्लिष्ठपूर्ण, विकीर्ण शीर्ण रोमक
(ये ग्रन्थि पर्ण वनस्पति के नाम हैं)
तगर
केसर
गुग्गुल
गोरोचन
सुनिषण्णक वनस्पति ।
सुगन्ध बाला
वालछड़
मोथा
मुरा वनस्पति
कपूर कचरी
प्रियंगु औषधि
सम्भालू के बीज
थुनेर
४३
५५
६७
६८
६८
१८३
१९०
१८३
११०
७५४
१९१
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१९४
१९४
१९४
१९५
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