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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध सुद्धवियडं वा ९ अन्नयरं वा तहप्पगारं वा पाणगजायं पुव्वामेव आलोइज्जाआउसोत्ति वा ! भइणित्ति वा ! दाहिसि मे इत्तो अन्नयरं पाणगजायं ? से सेवं वयंतस्स परो वइजा-आउसंतो समणा ! तुमं चेवेयं पाणगजायं पडिग्गहेण वा उस्सिचिया णं उयत्तिया णं गिण्हाहि, तहप्पगारं पाणगजायं सयं वा गिहिज्जा परो वा से दिजा, फासुयं लाभे संते पडिगाहिजा॥४१॥
___ छाया- स भिक्षुर्वा २ अथ यत् पुनः पानकजातं जानीयात् तद् यथाउत्स्वेदितं वा १ संस्वेदितं वा २ तन्दुलोदकं वा ३ अन्यतरद् वा तथाप्रकारं पानकजातं अधुना धौतं अनम्लं अब्युत्क्रान्तमपरिणतमविध्वस्तमप्रासुकं यावन्नो प्रतिगृण्हीयात्। अथ पुनरेवं जानीयात्, चिरधौतं, अम्लं व्युत्क्रान्तं परिणतं ध्वस्तं प्रासुकं प्रतिगृण्हीयात्। स भिक्षुर्वाः अथ यत् पुनः पानकजातं जानीयात्, तद्यथा-तिलोदकं वा ४ तुषोदकं वा ५ यवोदकं वा ६ आचाम्लं वा ७ सौवीरं वा ८ शुद्धविकटं वा ९ अन्यतरत् वा तथाप्रकारं वा पानकजातं पूर्वमेवालोचयेत्आयुष्मन् ! इति वा, भगिनि ! इति वा दास्यसि मे इतोऽन्यतरत् पानकजातम् ? अथ तस्यैवं वदतः परो वदेत्- आयुष्मन् श्रमण ! त्वं चैवेदं पानकजातं पतद्ग्रहेण वा उत्सिच्य अपवृत्य गृहाण, तथाप्रकारं पानकजातं स्वयं वा गृण्हीयात् परो वा तस्मै दद्यात्, प्रासुकं लाभे सति न प्रतिगृण्हीयात्।
पदार्थ-से-वह।भिक्खूवा- साधु अथवा साध्वी जल के लिए गृहस्थ के घर में प्रवेश करने पर।से जं पुण- फिर वह। पाणगजायं-पानी की जाति को-पानी के भेदों को। जाणिज्जा-जाने। तंजहा-जैसे कि। उस्सेइमं वा-चूर्ण से लिप्त बर्तन का धोवन, अथवा। संसेइमं वा-तिल आदि का धोवन, अथवा जिसमें पालक आदि शाक-भाजी को उबाला गया है वह धोवन या चावलों का ओसामन। चाउलोदगं वा-चावलों का धोवन या। अन्नयरं वा-अन्य कोई। तहप्पगारं-इसी प्रकार का। पाणगजायं-प्रासुक धोवन आदि। अहुणाधोयंतत्काल का हो।अणंबिलं-जिससे अभी तक उसका स्वाद परिवर्तित नहीं हुआ है, वह।अब्बुक्कंतं-अपने रस से अतिक्रान्त नहीं हुआ है।अपरिणयं-वर्णादि से परिणत नहीं हुआ है। अविद्धत्थं-जिसके जीव शस्त्र परिणत नहीं हुए हैं। अफासुयं-उसे अप्रासुक जानकर। जाव-यावत् मिलने पर भी। नो पडिग्गाहिज्जा-साधु उसे ग्रहण न करे।अह-अथवा। पुण-फिर। एवं-इस प्रकार। जाणिज्जा-जाने कि । चिराधोयं-जो धोवन चिर काल का है। अंबिलं-जिसका स्वाद बदल गया है। वुक्कंतं-अन्य रस को प्राप्त हो गया-अचित्त हो गया। परिणयं-जिसका वर्णादि बदल गया है। विद्धत्थं-शस्त्र परिणत हो गया है। फासुयं-उसे प्रासुक जानकर। पडिग्गाहिजा-साधु ग्रहण करे। से-वह। भिक्खू वा-साधु अथवा साध्वी। से-अथ। जं-जो। पुण-पुनः। पाणगजायं-पानी के सम्बन्ध में यह। जाणिज्जा-जाने। तंजहा-जैसे कि।तिलोदगं वा-तिलों का धोवन। तुसोदगं वा-अथवा तुष का धोवन। जवोदगं वा-अथवा यवों का धोवन।आयामगं वा-उबले हुए चावलों का धोवन। सोवीरं वाकांजी के भाजन का धोवन।सुद्धवियडं वा-उष्ण तथा प्रासुक पानी।अन्नयरं वा-या अन्य कोई। तहप्पगारं