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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्, द्वितीय श्रुतस्कन्ध गृहपति के। पुव्वामेव-पहले ही। उग्गह-अवग्रह आज्ञा मांगे।अणणुन्नविय-बिना आज्ञा मांगे।अपडिलेहियबिना प्रतिलेखना किए। अपमजिय-रजोहरणादि से प्रमार्जित किए बिना। नो अवंगुणिज वा-वह उस द्वार का उद्घाटन न करे उसे न खोले। पविसिज वा-तथा खोल कर प्रवेश न करे। निक्खमिज वा-और न निकले परन्तु। तेसिं-उस गृहपति के। पुव्वामेव-पहले ही। उग्गह-अवग्रह-आज्ञा को। अणुन्नविय-मांग कर फिर। पडिलेहियर-आंखों से भली प्रकार देख भाल कर। पमजिय २-रजोहरणादि से अच्छी तरह प्रमार्जित कर। तओ-तदनन्तर। संजयामेव-साधु यत्न पूर्वक। अवंगुणिज वा-उस द्वार का उद्घाटन करे और। पविसिज्ज वा-प्रवेश करे तथा प्रवेश के बाद। निक्खमेज वा-निकले।
मूलार्थ साधु या साध्वी गृहपति के घर के द्वार भाग को कण्टक शाखा से ढांका हुआ-बन्द किया हुआ देखकर उस गृहपति से आज्ञा मांगे बिना, उसे अपनी आंखों से देखे बिना
और रजोहरणादि से प्रमार्जित किए बिना न खोले न उसमें प्रवेश करे और न उसमें से निकले। किन्तु उस गृहस्थ की पहले ही आज्ञा लेकर, अपनी आंखों से देखकर और रजोहरणादि से प्रमार्जित करके उसे खोले, उसमें प्रवेश करे और उस से निकले।
हिन्दी विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर में प्रवेश करते समय साधु यह देखे कि घर का द्वार (कण्टक शाखा से) बन्द है, तो वह उस घर के व्यक्ति की आज्ञा लिए बिना तथा रजोहरण आदि से प्रमार्जित किए बिना उसे खोले नहीं, और न उस घर में प्रवेश करे तथा न उससे वापिस बाहर निकले। इससे स्पष्ट है कि यदि गृहस्थ के घर का दरवाजा बन्द है और साधु को कार्यवश उसके घर में जाना है तो वह उस घर के व्यक्ति की आज्ञा से यत्ना पूर्वक द्वार को देख कर खोल सकता है और उसके घर में जा-आ सकता है।
गृहस्थ के बन्द द्वार को उसकी आज्ञा के बिना खोलकर जाने से कई दोष लगने की सम्भावना है- १-यदि कोई बहिन स्नान कर रही हो तो वह साधु को देखकर उस पर क्रुद्ध हो सकती है, २-घर का मालिक आवेश वश साधु को अपशब्द भी कह सकता है, ३- यदि उसके घर से कोई वस्तु चली जाए तो साधु पर उसका दोषारोपण भी कर सकता है और ४-द्वार खुलने से पशु अन्दर जाकर कुछ पदार्थ खा जाएं या बिगाड़ दें या तोड़-फोड़ कर दें तो उसका आरोप भी वह साधु पर लगा सकता है। इस तरह बिना आज्ञा दरवाजा खोलकर जाने से कई दोष लगने की सम्भावना है, अतः साधु को घर के व्यक्ति की आज्ञा लिए बिना उसके घर के दरवाजे को खोलकर अन्दर नहीं जाना चाहिए।
गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होने के बाद साधु को किस विधि से आहार लेना चाहिए, इसका उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्- से भिक्खू वा २ से जं पुण जाणिज्जा समणं वा माहणं वा गामपिंडोलगं वा अतिहिं वा पुव्वपविढें पेहाए नो तेसिं संलोए सपडिदुवारे चिट्ठिज्जा, से तमायाय एगंतमवक्कमिजार अणावायमसंलोए चिट्ठिज्जा, से से परो अणावायमसंलोए चिट्ठमाणस्स असणं वा ४ आहटु दलइज्जा, से