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नवम अध्ययन, उद्देशक 3
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थे। अतः बौद्ध भिक्षु या दूसरे परिव्राजक आदि साधु अपने शरीर से चार अंगुल अधिक लम्बी लाठी का नालिका लेकर उस देश में विचरते थे, जिससे कुत्ते उन पर प्रहार न कर सकें। हिन्दी-विवेचन
प्रस्तुत गाथा में लाढ़ देश के लोगों के खान-पान एवं जीवन-व्यवहार का वर्णन किया गया है। इसमें बताया गया है कि वे लोग तुच्छ एवं तामस आहार करते थे। इससे उनकी वृत्ति क्रूर हो गई थी। आहार का भी मनुष्य के जीवन पर असर होता है। तामस पदार्थों का अधिक उपभोग करने वाले व्यक्ति को क्रोध अधिक आता है। उनका स्वभाव भी अति क्रूर था। वे साधु सन्न्यासियों के पीछे कुत्ते छोड़ देते थे। इस लिए बौद्ध भिक्षु आदि साधु-संन्यासी भिक्षा आदि को जाते समय अपने शरीर से 4 अंगुल ऊंचा डण्डा रखते थे। इस तरह वे कुत्तों से अपना बचाव करते थे। परन्तु, भगवान महावीर पूर्ण अहिंसक थे। वे किसी भी प्राणी को भयभीत नहीं करते थे। इसलिए अपने हाथ में डण्डा आदि कोई भी हथियार नहीं रखते थे। वे किसी भी - संकट से भयभीत नहीं होते थे। वे प्रत्येक संकट का स्वागत करते थे एवं समभाव पूर्वक उसे सहन करते थे। भगवान का उस प्रदेश में भ्रमण अपने कर्मों की निर्जरा एवं अज्ञान अंधकार में भटकते हुए प्राणियों के अभ्युदय के लिए होता था।
प्रस्तुत गाथा में प्रयुक्त समण-श्रमण शब्द यहां बौद्ध भिक्षुओं के लिए भी प्रयुक्त किया गया है। क्योंकि, जैन एवं बौद्ध दोनों संप्रदायों में मुनि या भिक्षु के लिए श्रमण शब्द प्रचलित था। भगवान महावीर एवं बुद्ध दोनों समकालीन थे और तथागत बुद्ध एवं उनके भिक्षुओं ने भी लाढ़ देश में भ्रमण किया था। वे जब ऐसे प्रदेश में जाते थे तो कुत्ते आदि के भय से बचने के लिए साथ में डण्डा रखते थे। परन्तु भगवान बिना किसी शस्त्र को धारण किए निर्भय होकर विचरते थे।
इस विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैंमूलम्- एवं पि तत्थ विहरंता, पुठ्ठपुव्वा अहेसि सुणिएहिं।
संलुञ्चमाणा सुणएहिं, दुच्चराणि तत्थ लाहिं॥6॥