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षष्ठ अध्ययन, उद्देशक 3
दंशमशक स्पर्शाः स्पृशंति, एकतरान् अन्यतरान् विरूप रूपान् स्पर्शान् अधिसहते, अचेलः लाघवं आगमयन् तपः तस्य अभिसमन्वागतं भवति । यथा इदं भगवता प्रवेदितं तदेवाभिसमेत्य सर्वात्मना ( सर्वतया) सम्यक्त्वमेव समभिजानीयात् । एवं तेषां महावीराणां चिर रात्रं पूर्वाणि वर्षाणि रीयमाणानां द्रव्याणां पश्य! अधिसोढम् ।
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पदार्थ - एयं- - यह पूर्वोक्त । खु - निश्चय अथवा वाक्यालंकार अर्थ में है आयाणं - कर्म ग्रहण करने के कारण धर्मोपकरण के अतिरिक्त उपधि का । निज्झोसइता - - त्याग कर देता है । मुणी - वह मुनि है तथा जो । सया - सदा । सुयक्खायधम्मे - सुन्दर धर्म वाला है । विहूयकप्पे - जिसने सम्यक् प्रकार से आचार को धारण किया है, वास्तव में वही मुनि कर्म क्षय कर सकता है । जे - जो साधु । अचेले - अल्प वस्त्र वाला। परिवुसिए - संयम में ठहरा हुआ है । णं - वाक्यालंकार में है। तस्स - उस । भिक्खुस्स - भिक्षु को । नो एवं भवइ - यह नहीं होता कि । मे - मेरा । वत्थे - नस्त्र। परिजुण्णे - सर्व प्रकार से जीर्ण हो गया है, अतः मैं वत्थं - नूतन वस्त्र की। जाइस्सामि - याचना करूंगा, फिर उसके सीने के लिए। सुत्तं - सूत्र की । जाइस्सामि - याचना करूंगा, फिर । सूइं - सूई की। जाइस्सामियाचना करूंगा, फिर । संधिस्सामि - उस वस्त्र का सन्धान करूंगा, फिर । सीविस्सामिफटे हुए वस्त्र को सीऊंगा। उक्कसिस्सामि - या छोटे वस्त्र के साथ अन्य वस्त्र जोड़ कर उसे लम्बा करूंगा, फिर । वुक्कसिस्मामि - अथवा बड़े वस्त्र को फाड़ कर छोटा करूंगा। परिहिस्सामि - फिर वस्त्र धारण करूंगा । पाउणिस्सामि - शरीर को आच्छादित करूंगा। (इस प्रकार के अध्यवसाय - जो कि आर्तध्यान को उत्पन्न करने वाले हैं - उस मुनि के नहीं होते ) । अदुवा - अथवा । तत्थ - उस अचेलत्व में । परिक्कमंतं- - पराक्रम करते हुए । अचेलं - अचेलक मुनि को । भुज्जो - फिर । तणफासा- तृण के स्पर्श । फुसंति - स्पर्शित होते हैं । सीयफासा - शीत के स्पर्श । फुसंति - स्पर्शित होते हैं। तेउफासा - उष्णता के स्पर्श । फुसंति-स्पर्शित होते हैं। दंसमसगफासा-डांस-मच्छर के स्पर्श । फुसंति - स्पर्शित होते हैं। एगयरे-उनमें से कोई एक परीषह, मन्द या तीव्र स्पर्श वाले हैं, तथा । अन्नयरे में से कई अन्य