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________________ पंचम अध्ययन, उद्देशक 4 607 भी चल सकता है। इसलिए अगीतार्थ साधु को अकेले विचरने का निषेध किया गया है। ___ एक बात यह भी है कि अव्यक्त अवस्था में अकेला रहने से उसका ज्ञान अधूरा रह जाता है। जैसे पूर्वकाल में माता-पिता अपने बच्चे को गुरुकुल में रखकर पढ़ाते थे, आज भी कई जगह ऐसा किया गया है। क्योंकि गुरुकुल में शिक्षक के अनुशासन में बच्चा ज्ञान की कमी को पूरा कर लेता है। उसी तरह गुरु के अनुशासन में रहकर शिष्य ज्ञानसम्पन्न बन जाता है। अतः श्रुत एवं ज्ञान साधना के लिए अगीतार्थ मुनि को गुरु की सेवा में रहना चाहिए और उनकी आज्ञा के बिना अकेले नहीं विचरना चाहिए। ___ क्रोधादि के वश अकेले विचरने वाले मुनि की क्या स्थिति होती है, इसका वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम्-वयसावि एगे बुइया कुप्पंति माणवा, उन्नयमाणे य नरे महया मोहेण मुज्झइ, संबाहा बहवे भुज्जो भुज्जो दुरइक्कम्मा अजाणओ अपासओ, एयं ते मा होउ, एयं कुसलस्स दंसणं, तद्दिट्ठीए तम्मुत्तीए तप्पुरत्कारे तस्सन्नी तन्निवेसणे, जयं विहारी चित्त निवाई पंथ निज्झाई पलिबाहिरे, पासिय पाणे गच्छिज्जा॥158॥ ___ छाया-वचसापि एके उक्ताः कुप्यन्ति मानवाः उन्नतमानश्च नरो महता मोहेन मुह्यति, संबाधाः बढ्यः भूयो भूयो दुरतिक्रमाः अजानतः अपश्यतः एतत् ते मा भवतु एतत् कुशलस्यदर्शनं तदृष्ट्या तन्मुक्त्या तत् पुरस्कारे तत् संज्ञी तन्निवेशनः यतमानः विहारी चित्तनिपाती पथनिायी परिबाह्य दृष्ट्वा प्राणिनः गच्छेत्। पदार्थ-वयसावि-वचन से गुरु द्वारा। बुइया-कहे हुए। एगे-कई एक। माणवा-मनुष्य अर्थात् शिष्य वर्ग। कुप्पंति-क्रोध करने लग जाता है। य-फिर। उन्नयमाणे-अहंकार करता हुआ। नरे-मनुष्य। महया मोहेण-महान् बड़े मोह से। मुज्झइ-कार्याकार्य विचार विवेक से विकल हो जाता है। संबाहा-संबाधा-पीड़ा। बहवे-बहुत। भुज्जो भुज्जो-पुनः पुनः। दुरइक्कम्मा-सहन करनी दुष्कर है।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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