________________
548
श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
सर्वेषां प्राणिनां सर्वेषां भूतानां सर्वेषां जीवानां सर्वेषां सत्त्वानाम् असातम् अपरिनिर्वाणं महद्भयं दुःखमिति इति ब्रवीमि।
पदार्थ-आवन्ति-जितने। केयावन्ति-कितने एक। लोयंसि-लोक में। समणा-श्रमण। य-और। माहणा-ब्राह्मण। य-समुच्चयार्थक है। पुढोपृथक्-पृथक् । विवाद-विवाद को। वयन्ति-कहते हैं। से-जो मैंने। दिळं-देखा है। च-शब्द उत्तरापेक्षी वा समुच्चयार्थक है। णे-हमने। सुयं-सुना है। णे-हमने। मयं-माना है। णे-हमने। विण्णायं-जाना है। णे-हमने। उड्ढे-ऊंची। अहं-नीची। तिरिये-तिर्यक्। दिसासु-दिशाओं में। सव्वओ-सर्व प्रकार से। सुपडिलेहियं-सुष्ठु प्रकार से पर्यालोचन किया है। णे-हमने वा हमारे तीर्थंकरों ने। च-प्राग्वत् जानना चाहिए। सव्वे-सब। पाणा-प्राणी। सव्वेजीवा-सब जीव। सव्वे भूया-सब भूत। सव्वेसत्ता-सब सत्त्व। हंतव्या-हनन करने चाहिए। अज्जावेयव्वा-उनसे आज्ञा से काम कराना चाहिए। परियावेयव्वा-उन्हें परिताप देना चाहिए। परिघेत्तव्वा-उन्हें पकड़ना चाहिए। उदवेयव्वा-उन्हें मरणान्त कष्ट देना चाहिए। परिघेत्तव्वा-उन्हें पकड़ना चाहिए। उदवेयवा-उन्हें मरणान्त कष्ट देना चाहिए। इत्थावि-धर्म चिन्ता में वा यज्ञादि में। जाणह-समझो। नत्थित्थदोसो-यहां पर, अर्थात् यज्ञादि के लिए पशुओं के मारने में कोई दोष नहीं है। अणारियवयणमेय-पापानुबन्धी होने से यह कथन अनार्यों का है। तत्थ-वाक्योपन्यास अथवा निर्धारण में जानना, वहां पर। जे-जो। आयरिया-आर्य हैं। ते-वे। एवं-इस प्रकार। वयासी-कहते हैं। से भे दुदिलैं-यह तुम्हारा देखना दुष्ट है। च-उत्तरापेक्षी वा समुच्चयार्थक है। भे दुस्सुयं-तुम्हारा यह सुनना मिथ्या है। च-पुनः। भे दुम्मयं-तुम्हारा यह मानना मिथ्या है। भे दुब्बिण्णाय-तुम्हारा यह विज्ञान विशेष रूप में ज्ञात भी-मिथ्या है दुर्विज्ञात है। च-प्राग्वत् । भे-आपके द्वारा। उड्ढे-ऊंची। अहं-नीची। तिरियं-तिर्यक्। दिसासु-दिशाओं में। सव्वओ-सब प्रकार से। दुप्पडिलेहियं-दुष्प्रतिलेखित वा दुष्प्रत्युपेक्षित है। च-और। भे-आपने। णं-वाक्यलंकार में। जं-जो वक्ष्यमाण। तुब्भे-तुम लोग। एवं-इस प्रकार। आइक्खह-कहते हो। एवं-इस भांति। भासह-भाषण करते हो। एवं-इस भांति। परूवेह-प्ररूपण करते हो। एवं-इस भांति। पण्णावेह-प्रज्ञापन करते हो।