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तृतीय अध्ययन, उद्देशक 1
"एवं प्रतिकूल विषयों का अनुभव मन के द्वारा होता है। जब इन्द्रियों के साथ मन का संबन्ध जुड़ा होता है, तो हमें उसके द्वारा अच्छे-बुरे विषयों का अनुभव एवं उससे सुख-दुःख का संवेदन होता है । परन्तु जब मन का सम्बन्ध साध्य के साथ जुड़ा होता है, वह अपने लक्ष्य में तन्मय होता है, तो उस समय उसे इन्द्रियों के साथ विषयों का संबन्ध होते हुए भी उसकी अनुभूति नहीं होती, सुख-दुःख का संवेदन नहीं होता ।
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कुछ वर्ष हुए प्रो. भंसाली' के जीवन की एक घटना समाचार पत्रों में छपी थी। गरमी का महीना था । वे नंगे सिर नंगे पैर सेवाग्राम से वर्धा को जा रहे थे। उधर से महादेव देसाई अपने दो-तीन साथियों के साथ वर्धा से सेवाग्राम आ रहे थे। पैरों में जूते पहने हुए, सिर पर छाता ताने हुए चले आ रहे थे । फिर भी गरमी के कारण परेशान हो रहे थे। मार्ग में भंसाली जी को नंगे सिर नंगे पांव मस्ती में झूमते हुए आते देखा, तो सब हैरान रह गए। निकट आते ही महादेव भाई ने पूछा- क्यों भंसाली जी, गरमी नहीं लगती? महादेव भाई का स्वर सुनते ही वे एकदम चौंक उठे और ऊपर को देखते हुए बोले-क्या गरमी पड़ रही है? और आगे बढ़ गए। '
आगमों में भी वर्णन आता है कि साधु दिन के तीसरे पहर अथवा बारह बजे के बाद भिक्षा के लिए जाते थे । इसका अर्थ यह नहीं है कि उनको गरमी नहीं लगती थी। उष्णता का स्पर्श तो होता था, परन्तु मन आत्म-साधना में संलग्न होने के कारण उस कष्ट की अनुभूति नहीं होती थी । कभी-कभी चिन्तन में इतनी तन्मयता हो जाती कि उन्हें पता ही नहीं लगता कि गरमी पड़ रही है या नहीं। इससे यह स्पष्ट . हो जाता है, कि जब साधक अपने लक्ष्य या साध्य को सिद्ध करने में तन्मय हो जाता है, तो उस समय वह अनुकूल एवं प्रतिकूल परीषह को आसानी से सहन कर लेता है ।
प्रस्तुत सूत्र में यही बताया गया है कि मोक्ष की तीव्र अभिलाषा रखने वाला साधक शीतोष्ण परीषह को समभाव पूर्वक सहन कर लेता है और वह वैर-विरोध से निवृत्त होकर संयम साधना में संलग्न हो जाता है और इस प्रक्रिया के द्वारा वह समस्त कर्म बन्धन तोड़कर मुक्त हो जाता है और अन्य प्राणियों को मोक्ष का मार्ग बताने में समर्थ होता है ।
1. प्रो. भंसाली गान्धी जी के सत्याग्रह आन्दोलन के एक सैनिक थे और अभी कुछ मास पहले अणु परीक्षण बन्द करने के विरोध में आपने 61 दिन का अनशन किया था ।