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द्वितीय अध्ययन, उद्देशक 1 गुणट्ठी महया परियावेणं पुणो-पुणो वसे पमत्ते-तंजहा-माया मे, पिया में भज्जा मे पुत्ता मे, धूआ मे, ण्हुसा मे, सहिसयणसंगंथसंथुआ मे, विवित्तुवगरणपरिवट्टणभोयणच्छायणं मे। इच्चत्थं गड्डिए लोय वसे पमत्ते अहो य राओ य परितप्पमाणे कालाकालसमुट्ठाई संजोगट्ठी अट्ठालोभी आलुम्पे सहसाकारे विणिविट्ठचित्ते, एत्थ सत्थे पुणो-पुणो अप्पं च खलु आउयं इहमेगेसिं माणवाणं तंजहा॥63॥
छाया-यः गुणः स मूलस्थानं यत् मूलस्थानं स गुणः। इति स गुणार्थी महता परितापेन पुनः-पुनः वसेत् प्रमत्तः तद्यथा-माता मे, पिता मे, भ्राता मे, भार्या मे, भगिनी मे, पुत्राः मे, दुहिता मे, स्नुषा मे, सखि-स्वजन-संग्रन्थ-संस्तुता मे, बिविक्तोपकरण परिवर्तनभोजनाच्छादनं मे। इत्येवमर्थं गृद्धो लोकः वसेत् प्रमत्तः। अहश्च रात्रिश्च परितप्यमानः काला कालसमुत्थायी, संयोगार्थी, अर्थालोभी, आलुम्पः, सहसाकारः, विनिविष्टचित्तः, अत्र शस्त्रं पुनः-पुनः अल्पं च खलु आयुष्कमिहैकेषां मानवानां तद्यथा
पदार्थ-जे-जो। गुणे-शब्दादि गुण हैं। से-वे। मूलठ्ठाणे-मूल-स्थान-संसार का मूल कारण हैं। जे-जो। मूलठाणे-मूलस्थान हैं। से-वे। गुणे-गुण हैं। इति-इसलिए। से-वह। गुणट्ठी-गुणार्थी-विषयों का अभिलाषी। महयापरियावेणं-महान् परिताप एवं दुःखों के अनुभव या संवेदन से। पुणो-पुणो-बार-बार। वसे. पमत्ते-प्रमाद में बसता है। प्रमाद राग-द्वेष रूप होता है, इसलिए सूत्रकार राग की उत्पादक सामग्री का निर्देश कर रहे हैं। तंजहा-जैसे कि। माया मे-मेरी माता है। पिया मे-मेरा पिता है। भाया मे-मेरा भ्राता है। भइणी मे-मेरी बहिन है। भज्जा मे-मेरी पत्नी है। पुत्ता मे-मेरे पुत्र हैं। धूआ मे-मेरी पुत्री है। ण्हुसा मे-मेरी पुत्रवधू है। सहिसयणसंगंथसंथुआ मे-मेरा सखा, स्वजन-स्नेही, मित्र का मित्र एवं बार-बार मिलने वाला है। विवित्तुवगरणपरिवहण भोयणच्छायणं मे-मेरे उपकरण, भोजन-खाद्य-सामग्री एवं वस्त्र आदि सुन्दर हैं। इच्चत्थं-इस प्रकार के अर्थों में। गड्ढिए लोए-आसक्त व्यक्ति। वसे पमत्ते-प्रमादी बनकर रहते हैं। अहो-दिन। यः-और। राओ य-रात्रि में। परितप्पमाणे-सर्व प्रकार से संतप्त होता हुआ। कालाकाल समुट्ठाई-समय और असमय में सम्यक्तया उठने वाला।