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प्रथम अध्ययन, उद्देशक 7
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ज्ञातं भवति एष खलु ग्रन्थः, एष खलु मोहः, एष खलु मारः, एष खलु नरकः इत्यर्थं -गृद्धो लोकः यदिदं विरूपरूपैः शस्त्रैः वायुकर्म-समारम्भेण वायुशस्त्रं समारंभमाणाः अन्यान् अनेकरूपान् प्राणिनः विहिनस्ति।
पदार्थ-लज्जमाणा-लज्जा पाते हुए। पुढो-पृथक्-पृथक् वादियों को। पास-हे शिष्य! तू देख। अणगारामो त्ति-हम अनगार हैं। एगे-कई एक। पवयमाणा-कहते हुए। जमिणं-जिससे वे। विरूवरूवेहि-नाना प्रकार के। सत्थेहिं-शस्त्रों से। वाउकम्मसमारंभेणं-वायु कर्म समारंभ से। वाउसत्थं-वायुकाय शस्त्र के द्वारा। समारंभमाणा-समारम्भ करते हुए। अण्णे-अन्य। अणेगरूवे-अनेक प्रकार के। पाणे-प्राणियों की। विहिंसंति-हिंसा करते हैं। तत्थ-उस आरम्भ के विषय में। खलु-निश्चय ही। भगवया-भगवान ने। परिण्णा-परिज्ञा का। पवेइया-प्रतिपादन किया है। इमस्स चेव-इस असार जीवन के लिए। परिवंदणमाणणपूयणाए-प्रशंसा, मान और पूजा के लिए। जाइ-मरण-मोयणाए-जन्म-मरण से छूटने के लिए। दुक्खपडिघायहेउं-अन्य दुःखों के विनाशार्थ। से-वह। सयमेव-स्वयं ही। वाउसत्थं-यायुकाय शस्त्र का। समारभति-समारम्भ करता है। वा-अथवा। अण्णेहिं-दूसरों से। वाउसत्थं-वायु-शस्त्र का। समारंभावेइ-समारम्भ कराता है। अण्णे-अन्य। वाउसत्थं-वायु-शस्त्र का। समारंभमाणे-समारम्भ करने वालों की। समणुजाणइ-अनुमोदन करता है। तं-वह-वायुकाय का आरम्भ । से-उसको। अहियाए-अहित के लिए है। तं-वह-आरम्भ। से-उसको। अबोहीए-अबोधि के लिए है। से-वह। तं-उस आरम्भ के फल को। संबुज्झमाणे-जानता हुआ। आयाणीयं-आचरणीय-सम्यग् दर्शनादि का। समुट्ठाय-ग्रहणकर । सोच्चा-सुनकर। भगवओ-भगवान या। अणगाराणं-अनगारों के। अंतिए-समीप । इह-इस जिन शासन में। एगेसिं-किसी-किसी प्राणी को। णायं भवति-यह ज्ञात होता है कि। एस खलु-निश्चय ही यह आरंभ। गंथे-आठ कर्मों की ग्रन्थि रूप है। एस खलु-यह आरंभ। मोहे-मोहरूप है। एस खलु-निश्चय ही यह आरंभ। मारे-मृत्यु रूप है। एस खलु-निश्चय ही यह आरम्भ। णरए-नरक का कारण होने से नरक रूप है। इच्चत्थं-इस प्रकार अर्थ में। गड्ढिए-मूर्छित है। लोए-लोक-प्राणिसमुदाय। जमिणं-जिससे। विरूवरूवेहि-नाना प्रकार के। सत्थेहि-शस्त्रों से। वाउकम्मसमारंभेणं-वायु कर्म समारंभ से। वाउसत्थं-वायु-शस्त्र का।