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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
सामायिक किसे कहते हैं ? प्रथम श्री आचारांग - सूत्र को सामायिक कहते हैं । इसमें भी बाह्याचार एवं आभ्यन्तर साधना का ज्ञान एवं अनुष्ठान दोनों साथ-साथ चलते हैं जिससे आतुरता अपने आप उपशान्त होती है । जो ध्यान आप अभी करा रहे हैं, वह दीक्षा के प्रथम दिन से कराना आवश्यक है । इससे भी अच्छा तो यह है कि दीक्षित होने के पहले श्रावक अवस्था में ही ध्यान की शिक्षा एवं दीक्षा होनी जरूरी है और इस ध्यान अवस्था में यहाँ तक पहुँचना आवश्यक है जिसे हम आसन सिद्धि कहते हैं। आसन सिद्धि करीब साढ़े तीन घण्टे तक एक ही आसन में सुखपूर्वक अचल, अडिग, अकंप होकर स्थिर रहना । कायोत्सर्ग भाव से स्थिर रहना । उसके पश्चात् जब व्यक्ति दीक्षित होगा, तब आगे का मार्ग अपने आप खुलेगा। किसी विशेष कारण से अपवाद हो सकता है ।
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