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________________ प्रस्तुत विवेचन में आचार्य अभदेव सूरि ने नियुक्ति का अंधानुकरण किया है। आगम का मूल पाठ सम्पूर्ण आचारांग के 18 हजार पदों का स्पष्ट उल्लेख कर रहा है; फिर भी टीकाकार उसे इसलिए नहीं मान रहे हैं कि नियुक्तिकार उससे सहमत नहीं है। वे नियुक्ति को आगम से अधिक प्रामाणिक मानते हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपनी टीका में जो नन्दी सूत्र के टीकाकार का उल्लेख किया है, वह भी आगम के अनुकूल नहीं है। नन्दी सूत्र के मूल पाठ में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि 'प्रथम अंग (आचारांग सूत्र) के दो श्रुतस्कन्ध हैं, पच्चीस अध्ययन हैं, 85 उद्देशन काल, 85 समुद्देशन काल हैं और 18 हजार पद हैं । प्रस्तुत पाठ में आचारांग के सम्बन्ध में जो कुछ कहा गया है, वह स्पष्ट ही है। इसमें आचारांग के उभय श्रुतस्कन्धों के 18 हजार पद स्वीकार किए हैं, केवल प्रथम श्रुतस्कन्ध के नहीं। यदि सूत्रकार को प्रथम श्रुतस्कन्ध के 18 हजार पदों का उल्लेख करना होता तो वे सम्पूर्ण सूत्र के अंग-प्रत्यंगों का वर्णन करने से पूर्व ही उसका उल्लेख कर देते। परन्तु ऐसा नहीं किया गया, इससे स्पष्ट होता है कि दोनों श्रुतस्कन्धों के 18 हजार पद हैं। आचार्य मलयगिरि ने उक्त सूत्र की टीका करते समय अभयदेव सूरि का ही .. अनुकरण किया है। उन्होंने जिस रूप में नियुक्ति का समर्थन किया है, उससे उनकी परवशता ही झलकती है। पद-प्रमाण के विषय में आप प्रश्नोत्तर के रूप में लिखते हैं कि यदि आचारांग के दो श्रुतस्कन्ध, 25 अध्ययन और 18 हजार पद मानें तो नियुक्तिकार के कथन से विरोध होगा। क्योंकि वे प्रथम श्रुतस्कन्ध के ही 18 हजार पद मानते हैं। जबकि नन्दी सूत्र के मूल पाठ में दोनों श्रुतस्कन्धों के 18 हजार पद माने गए हैं? इस प्रश्न के समाधान में वे लिखते हैं कि प्रस्तुत आगम के दो श्रुतस्कन्ध और 25 अध्ययन हैं, परन्तु 18 हजार पद सम्पूर्ण आचारांग के नहीं, केवल प्रथम श्रुतस्कन्ध के ही हैं। इस सूत्र से यही अर्थ अभिप्रेत है। क्योंकि सूत्र अर्थ विलक्षण होता है। अतः गुरु परम्परा से ही उसे समझा जा सकता है। ___ इससे यही स्पष्ट होता है कि टीकाकारों को नियुक्ति के विचारों का मोह है। 1. पढमे अंगे दो सुयखंधा, पणवीसं अज्झयणा, पंचासीइं उद्देसणकाला पंचासीइं समुद्देसणकाला, अट्ठारस्स पयसहस्साणि पयग्गेणं। -नन्दी सूत्र, द्वादशांगी वर्णन 2. समवायांग टीका
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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