________________
प्रथम अध्ययन, उद्देशक 4
167 उसकी सजीवता स्पष्ट प्रमाणित होती है। क्योंकि निर्जीव पदार्थों को वायु की अपेक्षा नहीं रहती। काग़ज़ के टुकड़े को कुछ क्षणों के लिए ही नहीं, बल्कि कई दिन एवं वर्षों तक भी वायु न मिले तो भी उसका अस्तित्व बना रहेगा। परन्तु वायु के अभाव में अग्नि एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकती है। यदि वह निर्जीव होती तो अन्य निर्जीव पदार्थों की तरह वह भी वायु के अभाव में अपने अस्तित्व को स्थिर रख पाती। परन्तु ऐसा होता नहीं है। अतः अग्नि को सजीव मानना चाहिए। ___इससे स्पष्ट हो गया कि अग्निकाय सजीव है। इसलिए मुमुक्षु को अग्निकाय की सजीवता का निषेध नहीं करना चाहिए और अपनी आत्मा के अस्तित्व का भी अपलाप नहीं करना चाहिए। क्योंकि दोनों में समान रूप से आत्म-सत्ता है। अतः जो व्यक्ति अग्निकाय का अपलाप करता है, वह अपनी आत्मा के अस्तित्व से भी इनकार करता है। और जो अपनी आत्मा के अस्तित्व का निषेध करता है, वह अग्निकाय की सजीवता का भी निषेध करता है। इस तरह आत्म-स्वरूप की अपेक्षा से हमारी आत्मा एवं अग्निकायिक जीवों की आत्मा की समानता को बताया है। - आचार्य शीलांक ने ‘से बेमि' का अर्थ इस प्रकार किया है-“जिसने पृथ्वी और जलकाय की सजीवता को भली-भांति जानकर उसका प्रतिपादन किया है, वही मैं अनवरत पूर्ण ज्ञान-प्रकाश से प्रकाशमान भगवान महावीर से तेजस्काय के वास्तविक स्वरूप को सुनकर तुम्हें बताता हूँ। .. प्रस्तुत सूत्र में तेजस्काय की सजीवता को प्रमाणित करके, अब सूत्रकार उसके आरम्भ से निवृत्त होने का उपदेश देते हुए कहते हैं- ..
मूलम्-जे दीहलोग-सत्थस्स खेयण्णे से असत्थस्स खेयण्णे जे असत्थस्स खेयण्णे से दीह-लोक-सत्थस्स खेयण्णे॥33॥
1. न विणा वाउयाएणं अगणिकाए उज्जलइ। -भगवती सूत्र, शतक 16, उद्देशक 1 2. येन मया सामान्यात्मपदार्थ-पृथिव्यप्कायजीव-प्रविभागव्यावर्णनमकारि स एवाहम् - अव्यवच्छिन्नज्ञानप्रवाहस्तेजोजीवस्वरूपोपलम्भसमुपजनितजिनवचनसम्पदो ब्रवीम।
-आचारांग टीका, 31